* ' कलियों से कोई पूछता हँसती हैं या वो रोती है '
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उनकी आहट सुनाई दे रही है
हालांकि उनके पाँवों में कोई पायल नहीं हैं
दिख रहे हैं उनके खुरदरे हुए हाथ
जिनमें अब नहीं रहीं भारी भरकम चूड़ियाँ
वे कुछ बोलना चाहती हैं
शायद कोई आवाहन गीत भी गाएंगी
आँसू पोंछ कर तहखाने में
रोनी सूरत बंद कर आई हैं
हँसेंगी , बोलेंगी, बतियाएंगी भी
सबसे
क्योंकि उनका सबसे बड़ा उत्सव आ रहा है
सुनो ध्यान से उन्हें
हाँ ,मार्च का महीना आ गया है
- सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
*शीर्षक 'अनुपमा' फिल्म के प्रसिद्ध गीत से
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