सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रोटियाँ

 रोटियाँ :एक कविता ,इंद्रप्रस्थ भारती (दिल्ली हिन्दी अकादमी ) मई अंक से

ये आकाशवाणी है .....

नब्बे बरस ....कम नहीं होते किसी की ज़िंदगी के लिए .... सारे  अनुभवों से परिपूर्ण  परिपक्व आदमी ....भारत में अपना रेडियो  90 बरस का हो चुका है ....23 जुलाई 1927  को इसने जन्म लिया था मुंबई  में ...और तकनीक के एक नए उपहार से भारतवासी  परिचित हुए  ....तब से अब तक का सफर कितना मुश्किल रहा होगा... कहने की ज़रूरत नहीं ....हम सबने या तो कुछ फिल्मों में पुराने समय के रेडियो का दीदार किया है या फिर अपने घरों में दादी नानी के जमाने के सहेजकर रखे गए  रेडियो को छूकर ....हमसे बाद की पीढ़ी जो मोबाइल में रेडियो को सुनती है.... उसके लिए पुराने ज़माने का रेडियो किसी कौतुहल से कम नहीं है ....खैर भारतीय  रेडियो  यानी आज के आकाशवाणी का जन्मदिन है  तो  कुछ यादें स्वतः उड़ती चली आती हैं  ....बचपन में होश संभाला तो घर में रेडियों की ध्वनि भी पारिवारिक सदस्य की तरह थी .... मेरे पिताजी  रेडियो पर सुबह -शाम प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय  समाचार अवश्य सुनते थे ....उनके इस रेडियो प्रेम के सौजन्य से हमारा परिचय देवकी नंदन पांडे, विनोद कश्यप ,इंदु वाही ,हरी संधू,संजय बनर्जी  जैसी दिग्गज आवाज़ों से हुआ ....जब मैं स

औरत की हँसी

' इंद्रप्रस्थ भारती'(दिल्ली हिन्दी अकादमी)   के मई अंक  में मेरी प्रकाशित रचना :