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बड़ी उंगलियाँ, छोटी उंगलियाँ

बड़ी उंगलियाँ, छोटी उंगलियाँ

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याद आ रही हैं
तुम्हारी उंगलियाँ
जिन्हें थामे
सीख गईं मेरी उंगलियाँ
तय करना कंटीले रास्ते
बचना तीखी धूप से
तूफानों से लड़ना
और सोचना बड़ी बड़ी बातें
सच बड़ी जादूगर तुम्हारी उंगलियाँ।


पता नहीं कब
सहेली बन गईं
तुम्हारी उंगलियाँ-मेरी उंगलियाँ
पीढ़ीगत मतभेदों के बावजूद
कांटों की चुभन पर जब
बहते थे आंसू चुपचाप मेरे
पोंछ डालतीं आंसू
तुम्हारी ही रूमाली उंगलियाँ ।

वक्त़ की सरपट चाल में
मेरी उंगलियाँ जवान हो गईं
और तुम्हारी बूढ़ी सी
जिनपर वक्त़ के बेरहम घावों के
पड़े हैं भद्दे से निशान
तुम उन्हें झुर्रियां कहकर
टाल देती हो अक्सर
पर उन घावों की टीस
महसूस कर सकती हैं मेरी उंगलियाँ।

काश मेरी उंगलियाँ
मज़बूत हों इतनी
कि थाम सकें तुम्हारी उंगलियाँ माँ
और तुम शेष कठिन रास्ते
तय कर सको
आसानी से,
बेहिचक
क्योंकि
जुड़ी रहती हैं सदा
बड़ी उंगलियाँ, छोटी उंगलियाँ।

                      -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना

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