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जनवरी, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विपथगा

विपथगा --------------------------------------------------------------------------------- बहुत -सी आवाज़ें  आ रही हैं बहुत भीड़ नज़र आ रही है गर्दन घुमाकर  देखती हूँ उत्सुकतावश सदियों से चल रही पंक्ति कहाँ तक पहुँची है पर अफ़सोस मुझे कोई फ़र्क़ नज़र नहीं आ रहा है मनु नामक मूर्ति मुस्कुरा रही है उसकी संहिता का अनुपालन  बखूबी कर रही है वह भीड़ तलाश रही है आज भी सुपर मार्केट में रोटी पकाने के लिए तवा कोई गोल माथे पर चमकती  हुई  बिंदिया अनमोल होठों की महंगी सुर्ख लाली साथ में नई क्रीम गोरा बनाने वाली भीड़ बनी गतिहीन पर मुझे चाहिए गति.....और गति इसलिए भीड़ से विलगित पाँवों को मानकर गुरु  होगी साधना कोई साथ नहीं देगा पर निश्चय है यही मेरा नहीं बनना भीड़ का हिस्सा तवा के अलावा  रखना है पूरे ब्रह्माण्ड का हिसाब सामने है रात का स्याह अंधेरा छिप नहीं पा रही है इसमें नियति भीड़ की कैसे न करूँ भीड़ से अलग चलने की ज़िद जब मेरी मंज़िल बस दूसरी चाहरदीवारी न हो तब उन्होंने चाहरदीवारिय
प्रार्थना नए साल पर --------------------------------------------------------------- काश ऐसा हो भगवान ,  घर आए  इस  नए साल में भूखों को निवाला मिले, सुबह-शाम यहाँ हर हाल में सुबह को निकले परिंदे ,सुरक्षित शाम को नीड़ लौटें बेटियों के चेहरे पर भी, सुबह -सी  रौनक  संग लौटे किसी भी शहर में ग़रीब कोई,  फुटपाथ पर न सोए किसी सिरफिरे की  गाड़ी,  कीड़े-मकोड़ों को न रौंदे कोख में किसी कन्या की,  अनसुनी चीख  न निकले घर और अस्पताल के,  कसाइयों का यूं दिल पिघले लड़का और लड़की  अब,  सचमुच बराबरी में ही  पले दहेज की आग में फिर से, किसी घर की लक्ष्मी न जले ---------×--------×--------×--------×--------×---------×------×-------