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कन्या पूजन के बहाने.....यह चुप रहने का समय है

मित्रों,  नवरात्रि एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं।महाष्टमी के दिन गौरी पूजन हेतु बच्चियों की तलाश शुरू हो गई है.....मेरे मोहल्ले में ....और आपके मोहल्ले में भी...मेरे मोहल्ले में तो तीन -चार बच्चियाँ अभी कम पड़ रही हैं...उम्मीद है कि आपके यहाँ भी संख्या कम पड़ रही होगी. ...अब क्या करेंगे.... हर साल की तरह ....यही न कि आसपास की झुग्गी बस्ती से कन्याओं को बुलाएंगे...चलिए कम से कम ये झुग्गी बस्ती वाले किसी बात में हमसे अच्छे हैं. ....वे भले ही बेटे की चाह में आधा दर्जन बेटियाँ पैदा कर लेंगे. ...लेकिन बेटियों की गर्भ में पहचान कर... मारने की घटना  उनके यहां बहुत कम दिखती है..सीधी सी बात है. ..चोरी-छुपे लिंग परीक्षण और ...भ्रूण की हत्या करने में पैसे भी तो खर्च करने होंगे.                                 अब देखिये न....जैसे जैसे हमारी बेटियों की संख्या कम होती जा रही है. ...वैसे वैसे हम नए तर्क और बहाने भी गढ़ना सीख रहे हैं....पहले यह कहा जाता था कि बेटियों के दहेज के जुगाड़ की चिंता के कारण उन्हें मारा जाता है...हालांकि यह तर्क भी गले नहीं उतरता है....जब हम अच्छे भले धनाढ्य अथवा श

यह टूटने का समय न था

यह टूटने का समय न था -------------------------------------------------------- डाल से टूटी हुई पत्ती थी मैं डाल को लेकिन कोई ग़म न था स्पर्श अभी स्निग्ध था और रंग भी हरा - हरा असमय ऐसे टूटकर  बिछड़ना था बिछड़ गई हवाओं ने जब जी चाहा तूफ़ानों का शक्ल अख्तियार किया फ़िज़ाओं में भटकती थपेड़े खाकर पीली हुई डाल की ओर तरसते नेत्रों से देखा पर वहाँ अजनबीपन से भरा गहरा सन्नाटा पसरा था मैंनें खुद को समझाया कि मेरी पहचान बदल गई थी और मैं तो कब की मार दी गई थी  मेरी चीखें कैसे सुन सकते थे वे जिन्होंने बोलने से पहले ही मेरी ज़बान काट ली थी यही तो दुनिया का उसूल है टूटी हुई पत्ती भला  जुड़ती है कभी डाल से ! - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना 09.10.2015