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जुलाई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक कविता

इस जनम की बिटिया बिटिया सोई है पर न जाने किस दुनिया में खोई है रह-रहकर जब वह मुस्कुराती है  दादी-नानी कहती हैं- 'नींद में उसे हँसाते हैं रामजी' जो भी हो उसकी  मुस्कुराहट दुनिया की सबसे हसीन मुस्कुराहट लगती है  नज़र न लगे किसी की अभी अभी तो वह इस दुनिया में आई है ये बिटिया पहली संतान है इसलिए  आ रहीं हैं तरह-तरह की बधाइयाँ, 'कोई बात नहीं बेटी हुई है तो अगली बार बेटा भी मिल जाएगा' सांत्वना की बारंबार आवृत्ति के साथ यह भी कि लक्ष्मीजी आपके घर आई हैं हर बधाई का स्वागत करना  मज़बूरी है मेरी पर अपने शुभचिंतकों का दिल दुखाए बिना यह कहने से रोक नहीं पाती खुद को बेटा-बेटी  की किलकारियों का फर्क नहीं मालूम मुझे  अपना अंश जैसा भी हो जान से प्यारा लगता है सचमुच जब जब वह मुस्कुराती है नज़र आता है बस एक नन्हा फरिश्ता जिसमें मुझे ज़िन्दगी बार बार झांककर  मेरी ही अगली कड़ी का देती है आमंत्रण याद नही रह पाता तब समाज का इतिहास-भूगोल रटी-रटाई ख्वाहिशें आदमी की भेड़चाल  जमाने की नापतौल और इन स

मौन क्यों हैं पापा

मौन क्यों हैं पापा कल ही की तो बात है पापा जब रेडियो पर सुन रहे थे आप 'सेल्फ़ी विद डॉटर्स ' की बात मेरी प्यारी सी मम्मा के साथ मैं भी तो सुन रही थी और सुनकर मीठे सपने देखने लगी थी  कि जब मैं बाहर की दुनिया में आ जाऊंगी आप पहनाएंगे मुझे तितलियों वाला बूटेदार फ्राॅक और मुझे कहते हुए 'स्माइल प्लीज़ माइ डॉटर' एक शानदार सेल्फ़ी खीचेंगे इन्हीं ख़यालों में डूबी मैं इतराने लगी थी अंधेरे से उजाले की ओर टुकुर - टुकुर ताकने लगी थी पता नहीं फिर क्या हुआ कल रात अचानक आप ज़ोर-ज़ोर से से चिल्ला रहे थे और मम्मा रोने लगी थी  सुबह होने तक  होती रही बरसात  उनके ज़ल्दी ज़ल्दी करवटें बदलने से मैं भी जागती रही पूरी रात कल ही की तो बात है पापा मैं सपने बुन रही थी और आज डरने लगी हूँ यह जगह अपना छोटा -सा घर तो नहीं लगता कैंची और चाकू क्यों मम्मा की चूड़ियों के साथ खनखना रहे हैं  आ रही हैं कैसी दवाओं की  ये गंध अरे देखिए न पापा दस्ताने पहने हाथ  मेरे आश्रय की तरफ़ बढ़ रहे हैं तेजी से जहाँ और कई महीने रहना था