विदा होती बेटियाँ
रोती हैं सब बेटियाँ
जब लाँघ कर देहरी मायके की
एक नई दुनिया की ओर
कदम रखती हैं हौले से
सब की सब नहीं होती हैं
सबसे अमीर पिता की संतान
सबके घर में नहीं होती है
कोई कामधेनु गाय
सबके घर नहीं होते
आलीशान राजमहल
सबके पास नहीं आता
सफेद घोड़े पर सवार सुंदर राजकुमार
फिर भी वे तैर लेती हैं कभी - कभी
ख़्वाबों के स्वीमिंग पुल में
गा लेती हैं उम्मीदों के गीत
सुंदर गार्डेन की धूप - छाँव में
सिनेमा के काल्पनिक गीतों को याद कर
रिश्ता तय होने के बाद से ही
कभी हँसती हैं
कभी रोती हैं अचानक
कभी भविष्य को ताकती हैं
कभी अतीत को झाँकती हैं
रात्रि के एकांत में प्रायः उदास हो जाती हैं बेटियाँ -
कि न जाने कैसे चुकेगा पिता का क़र्ज़ नया
कि कौन रखेगा
दिन- ब -दिन
पृथ्वी की तरह बूढ़ाती अपने वदन पर
नई बीमारियों की लिस्ट जोड़ रही
स्नेहिल बरगद की छाँव-सी माँ का ख़याल
विदाई के पलों में तो
बेटियों की उदासी की ज्वालामुखी
फूटकर लावा बिखेर जाती हैं
जब देखती हैं -
ताउम्र कठोर रहे पिता को भी
बिलख कर नाज़ुक अंकुर बन जाना
हमेशा लड़ते -झगड़ते रहे भाई का
मड़वा के हरे बाँस को पकड़
ख़ूब फफककर रोना
'कि अभी कुछ दिन और रहना था न '
बहनापा का सिसकना लगातार
और विक्षिप्त -सी माँ के हाथों पहली बार मिलता खोइंछा
परंतु ,
हे मीडिया
तुमने कैसे देख लिया
विदा होती सबसे अमीर बेटी के रोने में
विश्व का आठवाँ आश्चर्य
रोना एक स्वाभाविक क्रिया है
हाँ, यह अलग बात है
सब के रोने में खारा पानीवाले आँसू गिरते हैं
शहजादियों की आँखों से बेशकीमती मोती निकलते हैं !
सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
15/12/18
Nice Post mam,Are you from Gorakhpur
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