कछुए के पाँव पे
सुना है
कोई मुझे जानता नहीं
कोई पहचानता नहीं
जैसे आ गई हूँ
अपने कुनबे से बिछड़कर
एक बिल्कुल नए इलाक़े में
तो किसने कहा था मुझसे
ले लो अल्पविराम
जहाँ छोटे -से अंतराल में
बदल जाती है पूरी दुनिया
कुचल देते हैं बेरहमी से
रेस के घोड़े
तो क्या
मैं नहीं तनिक शर्मिंदा हूँ
अभी भी मैं ज़िंदा हूँ
रेस के घोड़ों के बीच
कछुए के पाँव पे चलते हुए
सूरज के साथ टहलते हुए !
सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
*तस्वीर गूगल से साभार
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