हिन्दी दिवस की बहुत बधाई सभी पाठक मित्रों को ....हिन्दीभाषी होने के कारण ही शायद मैं यहाँ हूँ और इतने व्यापक क्षेत्र तक अपनी बात पहुँचा पा रही हूँ। बहुत अच्छा लगता है अपनी बात कहने में अपनी मातृभाषा में .... यूँ तो मैं एक भोजपुरीभाषी क्षेत्र से संबंधित हूँ ....इसलिए हिन्दी पर इसका असर बिल्कुल स्वाभाविक है ...क्षेत्रीय बोलियाँ और भाषाएं हमारी हिन्दी के लिए ख़तरा नहीं जैसा कि आजकल कई विद्वान इस विवाद पर कमर कसे हुए हैं ....इससे हिन्दी और भी समृद्ध होती है और यह विविधता इसे बहुत सुंदर बनाती है ....शायद सचमुच की राष्ट्रभाषा की सारी ख़ूबसूरतियों को समेटे हुए ....
कुछ लोग हिन्दी को लेकर अधिक ही चिंतित हो जाते हैं .... पर अतिशुद्धतावाद का यह आग्रह ही इसकी नैया को डूबो भी सकता है क्योंकि यह अभी भी मंझधार में खड़ी है ....और बहुत दूर किनारे हैं ...कुछ लचीला रूख तो हो ....कि सब इसकी मिठास को पहचान सकें न कि इसे अड़ियल खड़ूस मास्टरनी के रूप में दूर से ही देखकर भाग खड़े हों .
कुछ लोग आज के दिन सवाल उठाते हैं कि अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावक भी हिन्दी दिवस की बधाई देते हैं ....तो सज्जनों! इसके लिए हम सब नहीं बल्कि हमारे देश की सरकारों की नीतियाँ जिम्मेदार हैं ....यह सही है कि पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी की रोटी खानेवालों की संख्या में बहुत बढ़ोतरी हुई है परंतु यह काफ़ी नहीं है ....रोजगार की भाषा के पद पर अभी भी अंग्रेज़ी तानाशाह की तरह कायम है ....ऐसे में कोई अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार कर बच्चों का भविष्य क्यों चौपट करे ....वैसे भी भूमंडलीकरण के बाद हम अंग्रेज़ी को सौतन नहीं बता सकते हैं .....विरूद्ध स्वभाव के बावजूद हिन्दी को बड़ी बहन की तरह आगे बढ़कर अंग्रेज़ी को गले लगाना होगा .... इसी में इसकी भलाई है और हम सबकी भी ...हाँ... यह क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति पैदाइशी बहनापा को कम न कर दे.. इसका भी ध्यान रखना होगा .
हिन्दी मायका है और हम कहीं चले जाएं ....मायके का रंग नहीं छूटता चाहे कितना भी पक्का रंग चढ़ाने की कोशिश हो ....असली सुख माँ की गोद या स्मृतियों में कुछ पल आराम कर ही मिलता है न ....हमारी हिन्दी और उसकी क्षेत्रीय बहनें ऐसा ही सुख देती हैं .....बस ध्यान रहे कि नई पीढ़ी चेतन भगत ,...विक्रम सेठ ,शोभा डे जैसे सेलेब्रिटी नामों के साथ -साथ प्रेमचंद , जयशंकर प्रसाद,निराला ,महादेवी से लेकर मैत्रेयी पुष्पा ,गीताश्री, अनामिका को भी पहचान सके... समझ सके ..इसकी पूरी जिम्मेदारी हमारी है ...इसका दोष हम किसी दूसरे पर नहीं डाल सकते हैं ।
बहुत बहुत शुभकामनाएं ....हमें उम्मीद है कि हमारी ममतामयी हिन्दी की छाँव दिनोंदिन बढ़ती जाएगी और एक दिन कार्यवाहक विदेशी भाषा को गद्दी से उतार कर पूर्ण जनतांत्रिक सत्ता का उपहार देगी ...
हिन्दी के जनतांत्रिक स्वरूप को नमस्कार एक बिटिया का !
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