हर कली या फूल के साथ काँटें भी होने चाहिए ताकि यूं ही कोई मसल कर छुट्टा सांढ इतराता चला न जाए
बहुत अजीब समय है कि हर माली दहशत में है
माथे पे उनके ये गहरी शिकन है
क्या कलियों का खिलना गुनाह है या उनका खुलकर खिलखिलाकर हँसना
सोचो न कलियाँ खिलना बंद कर दें तो
दुनिया मरघट की खामोशी ओढ़कर कितनी सिकुड़ जाएगी
उस 'नैनो वर्ल्ड ' में किसी खुशबू और रंग की परिकल्पना
क्या कवियों के वश की बात है
या फिर ज्योतिषी बता सकते हैं गणना कर
कि सृष्टि इन कलियों के बिना ज़िंदा रह सकेगी कितने बरस
माँ के बिना नवजात संतान की परवरिश कहाँ आसान होती है
जिन्होंने नहीं सुना ऐसा अभागे बच्चों का रोना
उनकी मूर्खता को सलाम
पर अब वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं से कह दो
बनाएं जब भी नई पौध आधुनिक प्रयोगशालाओं में
कलियों को बस बेहतरीन रंग और खुशबू न दें
छुरीले मारक काँटों का साथ भी ज़रूर दें
अगर दुनिया बचानी है .........
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
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