वो साँवली खुरदुरी -सी लड़की
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अमावस को तो नहीं जन्मी थी
या अम्मा ने जामुन तो नहीं खा लिए थे ज़्यादा
उबटन नहीं लगा था क्या बचपन में
अब तो मर्दो के लिए भी आ गई है फेयरनेस क्रीम
तू किस दुनिया में रहती है -
पूछते हैं अक्सर लोग
ऊपर से मुस्कुरा देती है
टेढ़े चाँद की तरह
अंदर उबलती - उफनती धरती की बेटी
संभाल कर रखती है
शुभचिंतकों के ये क़ीमती दस्तावेज़
अंधेरे से मिलकर किसी रात
तकिये को उड़ेल देती है ये उपदेश
सुबह भरती है चिड़ियों संग लंबी उड़ानें
आकाश उसकी मुट्ठी में आ चुका है
पर पास नहीं कर पाती
ड्राइंगरूम में लिया जानेवाला कोई इम्तिहान
लड़खड़ाती -संभलती ट्रे में लाई गई चाय
पता नहीं कैसे 'डार्क' हो जाती है अक्सर
वह तो बड़े प्यार से बनाती है
आनुपातिक चीनी और दूध वाली मीठी चाय
परंतु दर्शनार्थियों का मुख कसैला -सा हो जाता है
प्याली नहीं होती कभी खाली
चाय ठंढी हो उदासी की मोटी छाली ओढ़ लेती है
हर असफल ड्रामे के बाद
ज्ञानी पंडित पिता को सलाह दे जाते हैं
रंगीन पत्थरों वाली अंगूठियाँ ठीक कर सकती हैं
कन्या के बिगड़े ग्रह -नक्षत्र
पड़ोसिनें बेचारी माता को देती हैं उलाहना
क्यों नहीं करती बिटिया तेरी
वृहस्पत या सोलह सोमवार का व्रत
पर वो साँवली खुरदुरी सी - लड़की
ज़िद्दी हवाओं की बचपन की सहेली है
नहीं जानती थमना ऊँचे पहाड़ों के पास
'अंग्रेजों ' से होगी 'महात्मा' की फिर से लड़ाई
यह तो बहुत लंबा सफ़र है
असली आज़ादी अभी कहाँ आई
ठहरो ....देखो तो
उसकी उजालों के विरूद्ध अद्भुत हाथापाई
दुआ करो इस बार
अंधेरा हो विजित
काग़ज़ों पर पसरती ही जा रही है
काली रोशनाई !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
29 /09/16
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