घोषणापत्र
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घूँघटों में
आँसू छिपे हैं
खुशियों की उछलती हुई कुछ गेंदें भी
घूँघटों के साथ आए हैं
खाली बड़े बर्तन
बर्तन इकट्ठे होकर
आपस में फुसफुसाएंगे
कोई अपना आँसू उड़ेल देगा
कोई गेंद अपनी छोड़ देगा
सब आँसू बाँट लेंगे
सब गेंदों से खेल लेंगे
फिर बर्तन भर जाएंगे लबालब
सबके चेहरों पर समभाव लिखे होंगे
पनघट छोड़ते समय
सब घूँघटों की आँखों में एक जुगनू होगी
लडेंगी अंधेरे के ख़िलाफ़
अंधेरे में रहते हुए
बाँटेंगी उषा -पर्व का प्रसाद
सभी साथिनों के बीच
कठिनतम व्रत ज़ारी है
चुल्हे पर प्रसाद पक रहा है
पूरी पवित्रता के साथ
चीटियों और गिलहरियों को भी
इधर आने की मनाही है
पर अबकी बार
नहीं है यह पुरातन पर्व
उनके लिए
जिन्होंने घूँघट दिए हैं
और घूँघटों के भीतर
बूढ़े ताले में बंद कूपमंडूक दुनिया
फुसफुसाहटों ने यही तय किया है
सदियों चली लंबी वार्ताओं के बाद
चकित मत हो सज्जनों
उन्हें भी लिखना आ गया है
अपने हिस्से का घोषणापत्र
अब पढ़ने की बारी तुम्हारी है
हाँ, पर ऐसी प्रतिक्रिया मत देना
घूँघटों के घोषणापत्र पर
कि वे निर्लज्ज वकील भी शरमा जाएं
जो करते हैं
बलत्कृत औरत से पूछताछ के बहाने
उसकी ही अस्मिता की वीभत्स चीरफाड़
ध्यान रहे आलोचना
घोषणापत्र की हो
निशाना वे 'घूँघटें' न हों !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
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