रहें न रहें हम
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वह एक गुड़िया थी. ...माटी की नहीं, जीती - जागती ......लेकिन उस गुड़िया का संसार उस समय उजड़ गया ....जब पिता की असामयिक मौत ने उसके सिर पर पूरे परिवार का बोझ लाद दिया.....और वह गुड़िया अचानक से बड़ी हो गई.....स्कूल की फीस भरने के पैसे न थे ,इसलिए स्वयं स्कूल नहीं गई ...मराठी-हिन्दी फिल्मों में अभिनय और पार्श्व गायन कर अपने भाई -बहनों को स्कूल भेजा .....शास्त्रीय संगीत का रियाज़ ...जो पिता ने पाँच साल की उम्र में शुरू करवाया था....आगे चलकर वही काम आया ....आरंभ में उच्चारण दोष के कारण उपहास का पात्र बनी लता ने निरंतर अभ्यास और मेहनत से जब अपना मुकाम हासिल कर लिया ...तब उन्हीं के गीत उच्चारण सीखने के लिए आदर्श बन गए ...इसे महज़ किस्मत का नाम देना मूर्खता है।
लताजी ने बहुत संघर्ष कर पहले से आसीन पार्श्व गायिकाओं के बीच अपनी जगह बनाई थी......फिर यह आरोप कैसे तर्कसंगत हो सकता है कि उन्होंने अपनी बहनों या अपनी समकालीन उभरती गायिकाओं के रास्ते रोके हों ....सबको अपनी जगह खुद बनानी पड़ती है ....शायद लता सर्वश्रेष्ठ होने के योग्य थीं, इसलिए वे सर्वश्रेष्ठ रही हैं।
'आएगा आनेवाला' गीत से हिट हुई लता का लगभग हर गीत अनमोल है....इसलिए छह दशकों से अधिक के लंबे सुरीले सफ़र में कई पीढ़ियाँ इनकी दीवानी रही हैं. ...हम स्त्रियों के सुख -दुख के हर क्षण के गीत हैं इनके गीत -कोश में....शायद इसीलिए लताजी के बेहतरीन गानों की लिस्ट बनाना आकाश से तारे तोड़कर लाने के समान है....सब एक से बढ़कर एक....वे एक तरफ़ 'बैंया ना धरो ' या 'मन रे तू ही बता' जैसे शास्त्रीय संगीत आधारित मधुर गीत गा सकती हैं ...तो दूसरी तरफ़ 'आ जाने जां 'जैसा कैबरे भी बखूबी गा सकती हैं....वे कभी 'सायोनारा ' या 'ये गलियाँ या चौबारे ' में कमसिन युवती बनकर कोयल सी चहक सकती हैं ....तो वहीं 'सूनी रे नगरिया' या 'तड़प ये दिन रात की ' की विरहिणी नायिका का दर्द जी लेती हैं....'साँवरे रंग रांची ' या 'तुम आशा विश्वास हमारे' जैसे भजन से वे आध्यात्मिक भावभूमि को सबके लिए सहज बना देती हैं, तो उनकी 'सज्दा' अथवा फिल्मी ग़ज़लें ..ग़ज़ल के शौक़ीनों के दर्देदिल को अजीब सा सुकून देती हैं....'बड़ा नटखट है रे कृष्ण कन्हैया' हो या हाल का 'छुपा छुपी बहुत हुई ' हर माँ के हृदय को नम करने की अद्भुत क्षमता रखता है .....ऐसे ही 'चंदा रे मेरे भइया से कहना ' हर भाई बहन की संवेदना को झकझोर देता है. ...सच ही कहा था मुकेश साहब ने .... कि माँ का गाना हो तो बेटे को रूला देती हैं....बहन का गाना हो तो भाई को रूला देती हैं....हाँ ,वे अद्भुत हैं जो 'ऐ मेरे वतन के 'सुना कर पं.नेहरू को भी रूला देती हैं....पर वे सिर्फ़ रुलाती नहीं हैं ....प्रेम की मीठी चासनी में हर हृदय को सराबोर करती हैं सपने दिखलाती हुई,गुदगुदाती हुई।
वे और भी कई मायनों में अद्भुत है. ...वे लंदन के प्रसिद्ध राॅयल अल्बर्ट हाॅल में प्रोग्राम प्रस्तुत करनेवाली पहली भारतीय गायिका बनीं (1974)..... तो उसी साल सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज विश्व रिकार्ड भी बनाया .... वे भारत रत्न और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित स्वर कोकिला हैं.....वह मधुबाला की लगभग अनिवार्य आवाज़ बनी ही , तब से लेकर आज की माधुरी , काजोल ,करिश्मा तक लगभग सभी प्रमुख अभिनेत्रियों की आवाज़ बनकर उन सबको गौरवान्वित किया....वे भाग्यश्री की खनकती आवाज़ बन सकती हैं तो पेज थ्री की कोंकणा की दुनियादारी का अहसास भी ....यानी 'कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ के' ....
लता मंगेशकर यानी लता दीदी को जितने पुरस्कार मिले हैं, शायद किसी अन्य गायिका को नसीब न हो.....परंतु उन्हें जो सबसे बड़ा सम्मान मिला है ,वो उनके फैन्स का है ....ख़ासकर हम भारतीय महिलाओं का..... जो उनके गीतों से अक्सर जीने का संबल प्राप्त करती हैं.....यह सोचकर कि 'कहीं तो मिलेगी बहारों की मंजिल '..........
फिलहाल ,लताजी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ....वे आगे भी कुछ और गीत गाकर अमर करें ताकि अभी की पीढ़ी भी शोर - शराबे के बीच कुछ अच्छा गुनगुनाए !
सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
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