धरा के बारे में
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तपती है धरा
दिन भर
जाने किसके लिए
उसने पाना नहीं जाना कभी
बिल्कुल माँ की तरह
बस खोया है
अपना रूप- रंग, आकार
जानती है वह
पल-पल खोते -खोते
मिट जाएगी एक दिन
इस ब्रह्मांड में
फिर भी उसे अच्छा लगता है
मिट जाना
शायद उनके लिए
जो उसके अहसानों से बेफ़िक्र
याद नहीं रखते
उसका नाम
या यह अहसास
कि बीमार भी हो सकती है कभी
दिन-रात खटने वाली बूढ़ी माँ !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
(5 जून, 1999 को लिखित छोटी सी कविता)
फोटो इंटरनेट से साभार
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तपती है धरा
दिन भर
जाने किसके लिए
उसने पाना नहीं जाना कभी
बिल्कुल माँ की तरह
बस खोया है
अपना रूप- रंग, आकार
जानती है वह
पल-पल खोते -खोते
मिट जाएगी एक दिन
इस ब्रह्मांड में
फिर भी उसे अच्छा लगता है
मिट जाना
शायद उनके लिए
जो उसके अहसानों से बेफ़िक्र
याद नहीं रखते
उसका नाम
या यह अहसास
कि बीमार भी हो सकती है कभी
दिन-रात खटने वाली बूढ़ी माँ !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
(5 जून, 1999 को लिखित छोटी सी कविता)
फोटो इंटरनेट से साभार
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