इस बार
संकल्प लिया था
रात ने
नहीं रोएगी
चाहे गिर जाए
माथे पर बज्र
या धँस जाए
पैरों के नीचे की ज़मीन
पर रात रोई फूट फूट कर
जब नहीं आया चाँद
गिर गया था माथे पर
पूरा आकाश
और मर गई घुट घुटकर
बस कहने को सुबह हुई थी
चाहे न हो सचमुच प्यार
बस इतना करना अहसान
आँसुओं की थोड़ी कद्र कर लेना
जी लेगी थोड़ा और
अभागी रात !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
संकल्प लिया था
रात ने
नहीं रोएगी
चाहे गिर जाए
माथे पर बज्र
या धँस जाए
पैरों के नीचे की ज़मीन
पर रात रोई फूट फूट कर
जब नहीं आया चाँद
गिर गया था माथे पर
पूरा आकाश
और मर गई घुट घुटकर
बस कहने को सुबह हुई थी
चाहे न हो सचमुच प्यार
बस इतना करना अहसान
आँसुओं की थोड़ी कद्र कर लेना
जी लेगी थोड़ा और
अभागी रात !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
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