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चीज़ ....माल ...या टनाटन !

चीज़ ....माल ....या टनाटन !
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बड़ा पाॅपुलर हुआ था एक फिल्मी गाना
वो शायद नब्बे का दौर था
'तू चीज़ बड़ी है मस्त '
और कुछ मर्दों को मिल गया था जैसे सर्टिफ़िकेट
लड़कियों और औरतों को चीज़ मानने का
यह चीज़ 'चीज' से भी मुलायम होती थी
जिसे आता नहीं था प्रतिकार करना
सपेरे की धुन पर नागिन सी झूम जाती थी
खयालों में ही सही
किसी वशीकरण यंत्र का उम्दा विज्ञापन लगती थी

फिर माॅल संस्कृति के आगमन पर
वे विंडो शाॅपिंग का सेक्सी माल हो गईं
अब टनाटन और टंच दिखने लगी हैं
देश के सठियाए कर्णधारों को
पर उन्हें क्या जो गढ़ते हैं संबोधन
और अद्भुत विशेषण
उन्होंने नहीं सुना कभी
धड़कते सीनों का अरमान
कभी देखी नहीं गौर से
पंख कटे चिड़ियों की उड़ान
कभी पूछा नहीं मसली गई कलियों का हाल
कभी छोड़ा नहीं तितलियों को बाग में आज़ाद

बस वे जानते हैं औरत का औरत होना
औरत होना मने
कठपुतली कला का ज़िंदा होना
कहा हँसो तो हँसना
कहा रो तो रोना
ज़बान उसकी और संवाद अपना
खूब सजाया फिर नचाया
और मन को जीभर बहलाया
जी भर गया तो
नए चेहरे ले आया

पुराने की जगह
अक्सर नई चीज़ें ही तो लेती हैं
'यूज एंड थ्रो ' का आदर्श उदाहरण कहलाती हैं
झूठा जश्न मनाओ कि बाज़ार ऐसी चीज़ों से भरा पड़ा है
और वे सिखला रहे हैं
 इन चीज़ों को
मुस्कुराकर बिक जाना
इसे ही आज़ादी और बराबरी की
नई परिभाषा लिख जाना !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
7/10/17



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