यह ग़ज़ब समय है कि
फेंके जा रहे हैं पत्थर किसी के भी मकान पर
उतारे जा रहे हैं स्त्रियों के चरित्र के कपड़े सरे बाज़ार
महज़ इसलिए कि उन्होंने नहीं उतारी तुम्हारी आरती
और नहीं गाया तुम्हारा प्रशस्तिगान सुबहोशाम
उनकी रही गुस्ताख़ी कि वे चलीं उन रास्तों पर
जिनपर चलने की पाबंदी रही सदियों तक
हो सकता हो उन्होंने तुम्हारे फ़रमानों पर न किया हो अमल
या दिया हो तुम्हारे बेसिरपैर क़ानूनों में दखल
पर ऐसा भी क्या
कि जहाँ देवियाँ पूजी जाती रही हों
वहाँ किसी भी औरत को पहनाया जाने लगे
वेश्या या रंडी का थू -थूदार सामंती तमगा
ऐसा लगता है कि तुम "उनकी" सोहबत में ज़्यादा रहते हो
इसलिए विरुद्ध दिखनेवाली हर स्त्री को वेश्या कह रहे हो
यह पहले असभ्य लोगों की फूहड़ बोली कहलाती थी
अब क्यों सियासत की गली में रानी बन इठलाती जा रही है ......
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
फेंके जा रहे हैं पत्थर किसी के भी मकान पर
उतारे जा रहे हैं स्त्रियों के चरित्र के कपड़े सरे बाज़ार
महज़ इसलिए कि उन्होंने नहीं उतारी तुम्हारी आरती
और नहीं गाया तुम्हारा प्रशस्तिगान सुबहोशाम
उनकी रही गुस्ताख़ी कि वे चलीं उन रास्तों पर
जिनपर चलने की पाबंदी रही सदियों तक
हो सकता हो उन्होंने तुम्हारे फ़रमानों पर न किया हो अमल
या दिया हो तुम्हारे बेसिरपैर क़ानूनों में दखल
पर ऐसा भी क्या
कि जहाँ देवियाँ पूजी जाती रही हों
वहाँ किसी भी औरत को पहनाया जाने लगे
वेश्या या रंडी का थू -थूदार सामंती तमगा
ऐसा लगता है कि तुम "उनकी" सोहबत में ज़्यादा रहते हो
इसलिए विरुद्ध दिखनेवाली हर स्त्री को वेश्या कह रहे हो
यह पहले असभ्य लोगों की फूहड़ बोली कहलाती थी
अब क्यों सियासत की गली में रानी बन इठलाती जा रही है ......
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
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