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ख़ूबसूरत

ख़ूबसूरत
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वक़्त के साथ
बदल जाते हैं सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी
और अगर ग़ौर से देखो तो
बदल जाते हैं अपने अपने भगवान
और बदल जाते हैं उन्हें खुश करने के तरीके
फिर औरत तो हाड़ - मांस का आदिम टुकड़ा है न
ताउम्र सागर तलाशती बहती बावरी नदी का दुखड़ा है न
किसी ने जब अपनाया तो वह जान पाई कि वह भी ख़ूबसूरत है
तमाम दाग़-धब्बों के बावजूद वह भी चाँद की शायद मूरत है
हाँ, हो सकता है...तब वह परी दिखती रही हो
क्योंकि कहते हैं लोग कि पहली मुलाक़ातों में
अधिकांश औरतों के पास जादू की छड़ी होती है

वक़्त के दिए हर ज़ख्म को ढोया अपनी नाजुक पीठ पर
और चलती रही पगडंडियों और राजपथ पर वही हाथ थामे - थामे
नन्ही किलकारियों का सुख ढोना भी ज़िन्दगी का निहायत ज़रूरी हिस्सा था
आँखों के नीचे हर रोज़ बढ़ते काले पहाड़ पर  हांफकर चढ़ाई करके
रात और दिन के बीच लुढकते - चढ़ते  देह बन गई पुरानी  उघड़ती फुटबॉल
माथे पर लिख दिया अनवरत खेलती जिम्मेदारियों ने
कभी न मिटनेवाली अनगिनत झुर्रियों के भूतहा खौफ़नाक नाम
अब हर कोई माधुरी दीक्षित नहीं हो सकता न
बरसाती रहे कृपा बोटाॅक्स की झुर्रीहरण सूइयाँ
वह मोहिनी खिलखिलाती रहे सबके सपनों में आजीवन

फिर भी वह घरेलू औरत मानती है खुद को भी ख़ूबसूरत
और ओढ़ती है पतझड़ी पीले चितकबरे चेहरे पर
अपने बच्चों की सूरज से भी चमकदार मुस्कान
इस क्रम में याद नहीं रह पाता है हफ़्तों हफ़्तों
नाखूनों पर शक्ल बदलते मनहूस अमीबाओं को उतार फेंकना
और बिछाना फिर से चटक रंग की नई लुभावनी चादर किसी के लिए
हाँ, मुहल्ले के नुक्कड़ की ब्यूटी पार्लर वाली
जब भी मिल जाती है सब्जी का मोलभाव करते  समय
बतीसी दिखाती हुई मनुहार कर बैठती है
'करवा लो न आज भाभी जी फेशियल
तीस के बाद बांधती है त्वचा और पति को भी'
'नहीं अभी'.....मौज़ूद है समय न होने का सदाबहार बहाना
जानती है वह समय की आंच में धीमे धीमे अपने बाल पकाती
उतने पैसे में आ जाएगी अपनी गुड़िया की कोई सुंदर फ्राॅक
वैसे भी उसे याद रहता है अब भी उन हनीमूनी दिनों की बात
किसी ने भरोसा दिलाया था हाथ मज़बूती से थामकर
'ब्यूटी इज़न्ट स्कीन डिप् '
और वह इसी भरोसे के सहारे
पछाड़ती आई है दुनिया की तमाम ब्यूटी क्वीनों को
क्योंकि मन अभी भी है ज्यों का त्यों
बदल गई हो सारी दुनिया
बदल गई हो साथ ही
देह की कायनात !
- सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
1 जुलाई, 2016
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