ये चिराग़ बुझ रहे हैं ---------------------------------------------------------------------- ओ माहज़बी इतना दर्द कहाँ से लिया था उधार काली बदलियों से खामोश नदियों से या फिर सागर की उफनती नमकीन लहरों से अरे हाँ, सुना है तुम्हारे पिता को चाहिये था एक कमाऊ पूत शायद इसलिए तुम्हारी आपा के बाद तुम्हारे अनपेक्षित आगमन पर दे दिया था तुम्हें यतीमखाने का कारावास वो तो तुम्हारी माँ थीं जो हर माँ की तरह नहीं जानती थीं बेटे और बेटी को जन्माने की पीड़ा या अपनी ही देह के टुकड़ों के बीच का अंतर उनके आँसू ही खींच लाए थे तुम्हें फिर से अपने आंगन अभी तो तुम्हारे खेलने- कूदने की उमर हुई थी न अभी -अभी तो तुम्हारे पंख निकले होंगे पढ़ाई -लिखाई छोड़कर निस्संदेह अच्छा नहीं लगा होगा क़ैद होना लाइट .....कैमरा....एक्शन .....की ऊबाऊ दिनचर्या में चंद पैसों की ख़ातिर बेचना अपना बचपन इसलिए तुम्हारे अबोध मन को एक पिता ही पहला 'विलेन' नज़र आया...