पुत्र रत्न !
☆☆☆☆☆☆☆
नौ महीने का कर्ज़
उसने कैसे भुलाया होगा
कई - कई रातों को उसने जगाया होगा
जन्म पे जिसके इतरा कर इक अभागी माँ ने
पूरे मोहल्ले में लड्डू बँटवाया होगा
हर भूख पे वह जब अकुलाया होगा
माँ को उँगलियों से टटोला होगा
अभी -अभी सोई आँखों को भी
गीले बिस्तरों ने अक्सर जगाया होगा
अपने बेवक्त हँसने या रोने से भी
थके चेहरे को हौले -से मुस्कुराया होगा
उसकी नन्हीं उँगलियों को पकड़कर
गिर -गिर कर चलना सिखलाया होगा
हाथ थामकर उसका नई पेंसिल से
ककहरा लिखना बतलाया होगा
वक़्त के साथ -साथ पहली पाठशाला में
माँ ने ज़िंदगी का हर पाठ पढ़ाया होगा
बड़े अरमानों से भेजा होगा कलेजे के टुकड़े को
कहीं दूर सपनों को गढ़ने की ख़ातिर बारंबार अपने आँचल के एक कोने को
अहिस्ता - अहिस्ता बूढ़ी होती माँ ने
लुढकते गर्म आँसुओं से भिगोया होगा
खोजे होंगे फिर बूढ़ी आँखों ने चाँद
बड़े नेह से नाच -गाकर ढोल की थाप पर
दुनिया की 'सबसे सुंदर दुल्हन 'को घर लाया होगा
लक्ष्मी को बुलाकर उस लाडले का घर बसाया होगा
भेजना पड़ा होगा उसे सात समंदर पार जब
फिर से माँ की आँखों का सैलाब उफन आया होगा
रूकने की मिन्नत की होगी और थक - हार कर
पोते - पोतियों को दामन की सारी दुआएं दी होंगी
हर साल उसने मिलने आने का वायदा भी किया होगा
उस रोबोट ने फोन को बस मित्रों के लिए सजाया होगा
पता नहीं कैसे एक पुत्र रत्न ने ममता को ठेंगा दिखाया होगा
'मदर्स डे ' पर शायद ट्विटर पर माँ की तस्वीर लगाई होगी
या अपने गले में पट्टा डाले पत्नी के आगे सिर झुकाया होगा
पता नहीं कैसे दुनिया के सबसे अनमोल रिश्ते का
ख़ूब रगड़कर अपने दिल से नाम मिटाया होगा
पता नहीं कैसे उसने ज़िंदगी को झूठे रिश्तों से बहलाया होगा
पता नहीं कैसे उसे रूठी माँ को मनाना न आया होगा
उसे 'ओल्ड एज होम ' की बात असहज नहीं लगी होगी
विदेशी हवा ने क्या इस कदर मन बहकाया होगा
उसने ममता के कंकाल को दिल पर कैसे ढोया होगा
क्या वह भी बूढ़ी सांसों की तरह फूट -फूटकर रोया होगा
बचपन का अलबम फिर से तो फड़फड़ाया होगा
आइने में खुद को क्या गुनाहगार न पाया होगा
अब उसके डाॅलर पर उभरेंगी माँ की पुरानी तस्वीरें
उन डाॅलरों से खरीदनी होंगी घर की खुशियाँ
उसने दिल से भले ही दूर कर चैन पाया होगा
पर मरी हुई माँ के नाम का ...झूठा ही सही
उसे टिमटिमाता दीया तो जलाना होगा !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
09/08/17
माँ को उँगलियों से टटोला होगा
अभी -अभी सोई आँखों को भी
गीले बिस्तरों ने अक्सर जगाया होगा
अपने बेवक्त हँसने या रोने से भी
थके चेहरे को हौले -से मुस्कुराया होगा
उसकी नन्हीं उँगलियों को पकड़कर
गिर -गिर कर चलना सिखलाया होगा
हाथ थामकर उसका नई पेंसिल से
ककहरा लिखना बतलाया होगा
वक़्त के साथ -साथ पहली पाठशाला में
माँ ने ज़िंदगी का हर पाठ पढ़ाया होगा
बड़े अरमानों से भेजा होगा कलेजे के टुकड़े को
कहीं दूर सपनों को गढ़ने की ख़ातिर बारंबार अपने आँचल के एक कोने को
अहिस्ता - अहिस्ता बूढ़ी होती माँ ने
लुढकते गर्म आँसुओं से भिगोया होगा
खोजे होंगे फिर बूढ़ी आँखों ने चाँद
बड़े नेह से नाच -गाकर ढोल की थाप पर
दुनिया की 'सबसे सुंदर दुल्हन 'को घर लाया होगा
लक्ष्मी को बुलाकर उस लाडले का घर बसाया होगा
भेजना पड़ा होगा उसे सात समंदर पार जब
फिर से माँ की आँखों का सैलाब उफन आया होगा
रूकने की मिन्नत की होगी और थक - हार कर
पोते - पोतियों को दामन की सारी दुआएं दी होंगी
हर साल उसने मिलने आने का वायदा भी किया होगा
उस रोबोट ने फोन को बस मित्रों के लिए सजाया होगा
पता नहीं कैसे एक पुत्र रत्न ने ममता को ठेंगा दिखाया होगा
'मदर्स डे ' पर शायद ट्विटर पर माँ की तस्वीर लगाई होगी
या अपने गले में पट्टा डाले पत्नी के आगे सिर झुकाया होगा
पता नहीं कैसे दुनिया के सबसे अनमोल रिश्ते का
ख़ूब रगड़कर अपने दिल से नाम मिटाया होगा
पता नहीं कैसे उसने ज़िंदगी को झूठे रिश्तों से बहलाया होगा
पता नहीं कैसे उसे रूठी माँ को मनाना न आया होगा
उसे 'ओल्ड एज होम ' की बात असहज नहीं लगी होगी
विदेशी हवा ने क्या इस कदर मन बहकाया होगा
उसने ममता के कंकाल को दिल पर कैसे ढोया होगा
क्या वह भी बूढ़ी सांसों की तरह फूट -फूटकर रोया होगा
बचपन का अलबम फिर से तो फड़फड़ाया होगा
आइने में खुद को क्या गुनाहगार न पाया होगा
अब उसके डाॅलर पर उभरेंगी माँ की पुरानी तस्वीरें
उन डाॅलरों से खरीदनी होंगी घर की खुशियाँ
उसने दिल से भले ही दूर कर चैन पाया होगा
पर मरी हुई माँ के नाम का ...झूठा ही सही
उसे टिमटिमाता दीया तो जलाना होगा !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
09/08/17
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