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जड़ हवाओं के खिलाफ

जड़ हवाओं के खिलाफ 

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 हाँ  

बहुत लंबा सफ़र 

तय कर लिया हमने 

कभी चलना भी दूभर था 

दो क़दम 

ऊँची कँटीली चाहरदीवारी के बाहर 

सपनों में हँस - बोल बतिया लेती  थीं

रात के भुतहा अंधेरे में 

दबे अरमानों से  


दिन के सुनहले उजालों में  

आँगन के ऊपर छोटे आकाश में 

कुछ उड़ती चिड़ियों की झलक मिल जाती थी 

और हमारी हसरतें टटोलने लगती थीं 

अपने दोनों कंधों पर पंखों के उभार  


अब चाहरदीवारियों में 

एक चोर -दरवाज़ा लग गया है हमारे लिए

वहाँ से निकलकर 

कुछ दूर  चहलकदमी करने की मौन इजाज़त है  

पर मौका मिलते ही दौड़ भी लिया करती हैं हम 

आकाश भी बहुत विस्तृत हो चला है 

हमारे अनन्त सपनों के साथ 

अब चिड़ियों से रेस लगाने को जी चाहता है 

हमारे सतरंगी पंख तैयार हैं उल्टी गिनती के साथ  


ये अलग बात है 

कि अब भी हमारे पसीने की कीमत है 

पेशेवर धावकों से कम 

और हर मोड़ पर तैनात हैं तालिबानी लठैत 

झबरीली मूँछों पर देते ताव 

ऐसे में ज़रूरी है 

हमारे असंख्य पंखों का जुड़ाव 

हाँ निहायत ज़रूरी है 

उड़ान  

जड़ हवाओं के खिलाफ ! 

-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना 
8 मार्च, 2017 
'इस जनम की बिटिया' की ओर से सभी मित्रों को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं ।इस ब्लॉग का उद्देश्य ही महिला सशक्तिकरण है ,अतएव अपनी प्रतिक्रियाओं एवं सलाहों से हमें अवगत कराते रहें ।धन्यवाद 
                            नमस्कार  । 

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