सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

बहुत ख़ूबसूरत मगर साँवली सी




ये हैं उल्का गुप्ता..... 'झाँसी की रानी 'टीवी सीरियल की लक्ष्मीबाई के बचपन के किरदार मनु को बखूबी निभाया था।इन दिनों ये काफ़ी चर्चा में हैं ।दरअसल ये अब 19 साल की हो गई हैं और बड़े पर्दे का रूख कर चुकी हैं ।ये छोटे पर्दे पर  मिले रंगभेद के कड़वे अनुभव  से त्रस्त हैं। ये फेयर स्किन की डिमांड से परेशान हो वहाँ ऑडिशन देने नहीं जाती हैं ।बिल्कुल , आजकल जो चमक दमक से भरपूर सीरियल बन रहे हैं ,उनमें साँवली लड़की भला कहाँ फिट बैठती है? तो बालीवुड भी कहाँ इनके लिए पलकें बिछाए बैठा है।तो अब स्वाभाविक रूप से रास्ता दक्षिण भारतीय फिल्मों की ओर ही जाता है न। इसलिए इन्होंने वही किया ।खैर अब अभिनय का शौक़ है, तो समझौता तो करना ही है।वह भी ऐसे देश में जो वर्षों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा।'ह्वाइट एंड डार्क' का डार्कनेस अब तक कायम है लोगों की गुलाम मानसिकता में ।क्या आपके और हमारे घर में कोई साँवली महिला /लड़की नहीं होती है ?फिर टीवी सीरियल के फैमिली ड्रामों में इनकी जगह क्यों नहीं बन पाती है ।क्या ऐसा कर वे समाज में ग़लत संदेश नहीं दे रहे हैं ?अब चलिए बालीवुड की बात करें ।हर कोई स्मिता पाटिल या नंदिता दास नहीं बन सकता है ।काजोल, बिपाशा, प्रियंका ,रेखा ,हेमा मालिनी ,शिल्पा जैसी अभिनेत्रियों के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने यहाँ फिट बैठने के लिए धीरे- धीरे येन केन प्रकारेण अपना रंग निखारा ।यानी ब्यूटीफुल होने के लिए उत्तर भारत में मिल्की ह्वाइट होना निहायत ज़रूरी है ।पर इसके लिए जिम्मेदार कौन है.... फिल्मवाले या हम दर्शक ?शायद दोनों।अगर फिल्मकार साँवलेपन को तवज्जो दे और कहानी व अभिनय में दम हो तो दर्शक भी उसे सिर पर बिठा सकते हैं ।पर हमारे समाज में ही जो लोग साँवले दुल्हे के लिए भी मिल्की ह्वाइट की तलाश में एड़ी चोटी लगा देते हैं ,शायद उनके गले ऐसी फिल्में न उतरती हो ।जो भी हो अब वक्त आ गया है कि रंगभेद को हम नकारें और पुरजोर विरोध करें ,चाहे यह हमारी अपनी सामाजिक दुनिया में हो या फिर मनोरंजन की चमकती सिल्वर दुनिया में !

-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बड़े घर की लड़की

बड़े घर की लड़की  अब वह भी खेल सकती है भाई के सुंदर खिलौनों से  अब वह भी पढ़ सकती है भाई के संग महंगे स्कूल में  अब वह भी खुलकर हँस सकती है लड़कों की तरह  वह देखने जा सकती है दोस्तों के संग सिनेमा  वह जा सकती है अब काॅलेज के पिकनिक टुअर पर  वह रह सकती है दूर किसी महानगरीय हाॅस्टल में  वह धड़ल्ले इस्तेमाल कर सकती है फेसबुक, ह्वाट्सएप और ट्विटर  वह मस्ती में गा  और नाच सकती है फैमिली पार्टी में  वह पहन सकती है स्कर्ट ,जीन्स और टाॅप वह माँ - बाप से दोस्तों की तरह कर सकती है बातें  वह देख सकती है अनंत आसमान में उड़ने के ख़्वाब  इतनी सारी आज़ादियाँ तो हैं बड़े घर की लड़की  को  बस जीवनसाथी चुनने का अधिकार तो रहने दो  इज़्ज़त-प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी ऊँचे खानदान की  वैसे सब जानते हैं कि साँस लेने की तरह ही  लिखा है स्वेच्छा से विवाह का अधिकार भी  मानवाधिकार के सबसे बड़े दस्तावेज में ! ---------------------------------------------------

मातृभाषा दिवस आउर भोजपुरी

ढाका स्थित शहीद मीनार तस्वीरें गूगल से साभार  विश्व मातृभाषा दिवस की ढेरों बधाइयाँ ....... ------------------------ हमार मातृभाषा भोजपुरी रहल बा .....एहि से आज हम भोजपुरी में लिखे के कोशिश करतानी । मातृभाषा आ माई के महत्व हमार ज़िंदगी में सबसे जादे होखेला..... हम कहीं चल जाईं ......माई आ माई द्वारा सिखावल भाषा कभी न भूलाइल जाला...... हमार सोचे समझे के शक्ति हमार मातृभाषे में निहित हो जाला.....  हम बचपने से घर में भोजपुरी बोलेनी ....लेकिन लिखेके कभी मौका ना मिलल.....हम दोसर भाषा वाला लोगन से छमा मांगतानी ....लेकिन भोजपुरी भी देवनागरी लिपि में लिखल जाला ....एहि से आस बा कि जे हिंदीभाषी होई ओकरा समझे बूझे में दिक्कत ना होई. आज 21 फरवरी हs .....विश्व मातृभाषा दिवस..... हमनी के कृतज्ञ होके के चाहीं 1952 के पूर्वी पाकिस्तान आ ए घड़ी के बांग्लादेश के उ शहीद आ क्रांतिकारी नौजवानन के .....जिनकर भाषाइ अस्मिता के बदौलत आज इ दिवस संसार भर में मनावल जाता..... बांग्ला भाषा खाति शुरू भइल इ आंदोलन अब 1999 से विश्व भर में सांस्कृतिक विविधता आउर बहुभाषिता खाति मनावल जाला....अभिय...

कथनी -करनी

दिल्ली हिन्दी अकादमी की पत्रिका 'इंद्रप्रस्थ भारती' के मई अंक में प्रकाशित मेरी कविता  :"कथनी -करनी "