लावारिस
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ओ मेरी माँ !
शुक्रिया
कि मैं ज़िंदा हूँ
तुमने शुरू के महीनों में ही
नहीं मार फेंकवाए
टुकड़े- टुकड़े कर के
हो सकता है
अल्ट्रासाउंड वाले डाॅक्टर अंकल ने
मेरी जगह
मेरे भाई के आने की
पक्की खुशख़बरी सुनाई होगी
जो होता मेरे पिता के वंश का वाहक
और लाता भविष्य में दहेज की मोटी रकम
जो भी हो
उस डॉक्टर अंकल को भी थैंक्स
जिन लोगों ने भी
देखा साक्षात् और टीवी पर मुझे
यही कहा -
मैं अच्छे - भले घर की दिखती हूँ
तो बताओ न माँ
अच्छे घर में इतनी कमी होती है
क्या मुझ नन्ही सी ज़ान के लिए नहीं थी
दूध की कटोरी
दिल का कोई कोना न सही
घर का कोई कोना तो रहा होगा
जहाँ लग सकता था मेरा भी पालना
सीख ही लेती अभावों में रहकर
तुम्हारी तरह
अपने आँसुओं को भी थामना
जो भी हो माँ
मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं
तुम्हारी भी तो रही होगी
कोई बहुत बड़ी मज़बूरी
तुम्हारे मना करने पर भी
मंडराए होंगे बन के चक्रवात
तुम्हारे अपने ही बहुत ख़ास
वरना किसकी मजाल
जो तुम्हें अपने ही अंश को
यूं त्यागना पड़ा हो
अपने कलेजे पर पत्थर रखकर
तपती सी धूप में
इतनी बड़ी दुनिया में
अजनबियों की भीड़ में
ख़ैर ...कोई बात नहीं
मुझे तो मिल ही गया है घर
जहाँ मेरी तरह ही
कई बच्चे अभागे
वक़्त के साथ भूल जाते हैं
ज़ख्म जन्मजात
किसी ममत्व की आस
चलते - चलते पत्थरों पर
पैर भी बन जाते हैं पत्थर
हाँ, भविष्य का कोई ठिकाना नहीं
वर्तमान घिसट रहा है
कुछ अपने- से परायों के बीच
हो सकता है
तुम्हें भी याद आ जाए हमारी कभी
पर चुपके से देखने मत आना
इस अनाथालय के दर
किसी फिल्मी कहानी की
बेबस नायिका की तरह
बस शुभकामना है मेरी
ईश्वर अगली बार
यह मुराद पूरी कर देना
मेरी माँ की गोद में
बस एक चाँद - सा बेटा दे देना
ताकि कोई और बिटिया
जनम लेने से पहले
या जनम लेने के बाद
बेमौत न मरे
तुम्हारे घर से ना निकले
फिर कोई सामान
लावारिस !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
कुछ दिनों पूर्व देश की राजधानी के एक मेट्रो स्टेशन के पास एक दो दिन की बच्ची मिली थी लावारिस....बाद में उसे एक अनाथालय की शरण मिली ....उसी घटना से उपरोक्त पंक्तियाँ लिखने को विवश हुई ....हालांकि ऐसी घटनाएं हर रोज़ किसी न किसी जगह रोज़ घटती हैं. ....पर लोग पत्थर के हो चुके हैं ,बिल्कुल संवेदनहीन ....पंक्तियाँ अच्छी लगें तो हौसला बढ़ाएं ....और बेटी बचाने और उनकी अच्छी परवरिश का संदेश घर - घर फैलाएं ।
फोटो गूगल से साभार।
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ओ मेरी माँ !
शुक्रिया
कि मैं ज़िंदा हूँ
तुमने शुरू के महीनों में ही
नहीं मार फेंकवाए
टुकड़े- टुकड़े कर के
हो सकता है
अल्ट्रासाउंड वाले डाॅक्टर अंकल ने
मेरी जगह
मेरे भाई के आने की
पक्की खुशख़बरी सुनाई होगी
जो होता मेरे पिता के वंश का वाहक
और लाता भविष्य में दहेज की मोटी रकम
जो भी हो
उस डॉक्टर अंकल को भी थैंक्स
जिन लोगों ने भी
देखा साक्षात् और टीवी पर मुझे
यही कहा -
मैं अच्छे - भले घर की दिखती हूँ
तो बताओ न माँ
अच्छे घर में इतनी कमी होती है
क्या मुझ नन्ही सी ज़ान के लिए नहीं थी
दूध की कटोरी
दिल का कोई कोना न सही
घर का कोई कोना तो रहा होगा
जहाँ लग सकता था मेरा भी पालना
सीख ही लेती अभावों में रहकर
तुम्हारी तरह
अपने आँसुओं को भी थामना
जो भी हो माँ
मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं
तुम्हारी भी तो रही होगी
कोई बहुत बड़ी मज़बूरी
तुम्हारे मना करने पर भी
मंडराए होंगे बन के चक्रवात
तुम्हारे अपने ही बहुत ख़ास
वरना किसकी मजाल
जो तुम्हें अपने ही अंश को
यूं त्यागना पड़ा हो
अपने कलेजे पर पत्थर रखकर
तपती सी धूप में
इतनी बड़ी दुनिया में
अजनबियों की भीड़ में
ख़ैर ...कोई बात नहीं
मुझे तो मिल ही गया है घर
जहाँ मेरी तरह ही
कई बच्चे अभागे
वक़्त के साथ भूल जाते हैं
ज़ख्म जन्मजात
किसी ममत्व की आस
चलते - चलते पत्थरों पर
पैर भी बन जाते हैं पत्थर
हाँ, भविष्य का कोई ठिकाना नहीं
वर्तमान घिसट रहा है
कुछ अपने- से परायों के बीच
हो सकता है
तुम्हें भी याद आ जाए हमारी कभी
पर चुपके से देखने मत आना
इस अनाथालय के दर
किसी फिल्मी कहानी की
बेबस नायिका की तरह
बस शुभकामना है मेरी
ईश्वर अगली बार
यह मुराद पूरी कर देना
मेरी माँ की गोद में
बस एक चाँद - सा बेटा दे देना
ताकि कोई और बिटिया
जनम लेने से पहले
या जनम लेने के बाद
बेमौत न मरे
तुम्हारे घर से ना निकले
फिर कोई सामान
लावारिस !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
कुछ दिनों पूर्व देश की राजधानी के एक मेट्रो स्टेशन के पास एक दो दिन की बच्ची मिली थी लावारिस....बाद में उसे एक अनाथालय की शरण मिली ....उसी घटना से उपरोक्त पंक्तियाँ लिखने को विवश हुई ....हालांकि ऐसी घटनाएं हर रोज़ किसी न किसी जगह रोज़ घटती हैं. ....पर लोग पत्थर के हो चुके हैं ,बिल्कुल संवेदनहीन ....पंक्तियाँ अच्छी लगें तो हौसला बढ़ाएं ....और बेटी बचाने और उनकी अच्छी परवरिश का संदेश घर - घर फैलाएं ।
फोटो गूगल से साभार।
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