कल्पना चावला ( 17 मार्च 1962 - 1 फरवरी 2003) को समर्पित मेरी कविता, जो साहित्यिक पत्रिका 'हंस ' के सितम्बर माह,2010 के अंक में प्रकाशित हुई थी, एक बार फिर से यहां प्रस्तुत कर रही हूँ।
कल्पना चावला के प्रति
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तुम्हारी तरह ओ कल्पना
सपनीली आँखोंवाली
कई लड़कियाँ होती हैं
पर उनके हाथ
नहीं चूम पाते चाँद - सितारे
और कभी-कभी एक टुकड़ा ज़मीन भी ।
तुम्हारी तरह
कई लड़कियों का बचपन
चिड़ियों संग भरता है लंबी उड़ान
चाहरदीवारियों में पंख फड़फड़ाते
देखा करता है अक्सर
मेहंदी - चूड़ियों से इतर भी
ढेरों सतरंगे ख़्वाब ।
तुम्हारी तरह
कई लड़कियाँ चाहती हैं
' स्टोव ' या ' गैस ' की आग में झुलसने की बजाय
एक रोमांचकारी मौत
और उतारना अपनी जननी
और जन्मभूमि का थोड़ा-सा क़र्ज़ ।
तुम्हारी तरह
कई लड़कियों को याद दिलाए जाते हैं
उनके कर्त्तव्य और संस्कार
अट्ठारह-बीस की उम्र में करने को ब्याह
पर यहीं तुममें और उनमें आ जाता है फर्क
वे चाहकर भी नहीं तोड़ पातीं
जाति-धर्म और देश के बंधन ।
तुम्हारी तरह
अब सीख रही हैं लड़कियाँ
बेड़ियों को खोलना
अपने सपनों के अंतरिक्ष में रखना क़दम
और विनम्र चेहरे पर
बरकरार रखना हमेशा
एक सहज मुस्कुराहट ।
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