भेड़ियों का देश
उनकी चीखें अब भी सुनाई दे रही हैं
जो दफ़न कर दी गई अपने ही आश्रय में
उनके आँसू अब भी दे रहे ज़ख़्मों की गवाही
जो बची रह गई हैं ज़िंदा लाशें
उन्होंने शायद सुनी नहीं होंगी
आततायी राक्षसराज रावण की कहानी
जिसने क़ैद में भी रखा था सुरक्षित
अपहृत कर लाई गई सीता
उन्होंने नहीं देखी होंगी शायद पुरानी फ़िल्में
जिनमें कोठे पर तोड़ कर लाई गई कलियों का भी
फूल बनने तक होता था इंतज़ार
उन्होंने शायद सुनी होंगी खूंखार भेड़ियों की कहानी
पर अपने ही समक्ष देखा होगा पहली बार
वे चिल्लाई होंगी , फड़फड़ाई होंगी पिंजड़े में
देखकर उनके वहशी पंजे
पर महिला दलालों को भी रहम न आई होगी
काश इस वीभत्स हक़ीक़त का नाम बस मुज़फ्फ़रपुर ही होता
पर अफ़सोस.....
ओ ' धर्मपत्नी और लाडली पुत्री '
जो डाल रही हो पर्दा
अपने ही खूनी मुखिया भेड़िये के कुकर्मों पर
खुश हो लो कि-
वैसे ही ख़ौफ़नाक भेड़ियों से भर गया है यह पूरा देश
देवियों के नाम पर भी सज रही हैं मंडियाँ
और हाँ तुम्हारी तरह
वे बहुत कुलीन खानदान की नहीं बेटियाँ
पर इतना तो जानती होगी तुम भी
कि भेड़ियों के लिए कितना साॅफ्ट टारगेट बन सकती हैं
अबोध ग़रीब-लाचार बेटियाँ
औरत होने का कुछ तो शर्म करो
तुम्हारे आंगन में भी फुदक रही नन्ही चिड़िया
भेड़ियों के पंजों के निशान बढ़ते ही जा रहे हैं
यत्र- तत्र- सर्वत्र
क्या अब भी तुम्हें यक़ीन है
यह देश खूंखार भेड़ियों का नहीं है !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
6 अगस्त 2018
*तस्वीर 'अमर उजाला' से साभार
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