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वाटरवाइफ़



         
वाटरवाइफ़ 
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ओ पानीबाई उर्फ वाटरवाइफ़ 
तुम्हारी आँखों में भी तो छलककर
आ जाता होगा पानी कभी -कभी 
या तुमने इसे अपनी नियति मान 
सारे पानी को सुखा लिया है 
रख अपने कलेजे पर पत्थर 

सुना है मैंने 
तुम्हारे अनोखे जीवन के बारे में जबसे 
तू क्या सोचती होगी 
आते -जाते लंबे रस्ते में 
यही सोच रही तबसे 
या सहेलियों के संग 
अपने दुख की गठरी तुम 
कुछ हल्का कर लेती होगी 

देखो न कितने ज़ख़्म भरे पड़े हैं 
धरती के भी अधेड़ वदन पर 
काटने को तैयार हैं सरकारी कुल्हाड़ियाँ
राजधानी में सोलह हज़ार दरख़्त 
उन दरख़्तों  की भी सुंदर कहानी रही होगी 
कुछ हँसते होठों और गीली आँखों की ज़िंदगानी होगी 
विकास के नाम पर उनकी भी अब कुर्बानी होगी 

सोचकर अक्सर हैरान होती हूँ मैं 
यह विकास नामक एलियन -सा जीव 
तुम्हारे गाँव जाकर कभी झाँकता क्यों नहीं 
दूर -दराज के कुओं -दरियाओं को 
तुम्हारे पास बुलाता क्यों नहीं 
कहीं तुम्हारा गाँव चंदा की नगरी से भी दूर तो नहीं 
उस जगह कोई 'चंद्रयान ' उड़कर  पहुँच जाता क्यों नहीं 
इन प्रश्नों के उमड़ते -घुमड़ते बादलों के बीच 
सफेद परियों से घिरी  मैं
हज़ारों कौतूहल वाला 
कोई अबोध बच्चा बन जाती हूँ 
परंतु मेरे प्रश्नों के सही जवाब गर परियाँ दे जातीं 
यक़ीनन इस ज़मीन के सारे दरिया 
तुम्हारे मटकों को लबालब भर देते 
तुम्हारी पथराई आँखों से मोती टपक जाते 
और तुम्हे  कोई वास्तविक दर्जा मिल जाता 
बिना किसी उपसर्ग के 
मेरी तरह 
तुम्हारे घर की  मटमैली दीवारों पर 
लिखी होतीं
केवल तुम्हारी ही कुछ सुनहरी 
ख़्वाहिशें  !
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-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना,
24/06/2018 


*तस्वीर 'अमर उजाला 'से साभार 


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