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नृशंस से अधिक

नृशंस से अधिक ..... 

इस बार भेड़िये गाँव से
जंगल की ओर आए 
नोच-नोचकर बोटियाँ
मासूम गुड़िया के खा गए 

भगवान के घर में 
लगाए माथे पर कलंक -टीका 
भजन गाते हुए अधम पापी
नृशंसता को पीछे छोड़ आए 

कभी किया होगा 
नवरात्रि में कन्या-पूजन 
उस देवी को कैसे 
सहज दलन कर आए 

कैसे हैं वे भेड़िये
अपने ही पुत्रों के नाखून चमका रहे 
संग मिलकर अनवरत 
बोटियाँ खाना सिखला रहे 

सुन लें पापी वे 
न तिरंगा का 
न औरत का 
है कोई मज़हब होता 

वह नारी नहीं हो सकती 
जिसकी रूह न काँपी होगी 
भेड़ियों की ऐसी दास्तान 
पहले किसी ने न सुनी होगी 

सियासत की अगर मज़बूरी न हो 
उस मासूम का नाम भी 'निर्भया ' रख दो 
सज़ा ऐसी मुकर्रर कर दो 
हर भेड़िये की आँखें बन जाएं पत्थर  !
@कठुआ 
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना 




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