नहीं यह फ़ाहियानों और ह्वेनसांगों का वृतांत *********************** सुना है कि अपने देश से खत्म हो गया है जातिवाद, भेदभाव और छुआछूत का कहर सब मिलजुल के रहते हैं हर गाँव -शहर सच है क्या ,नागरिकों ऐसी कितनी सावित्रियाँ मारी जाती हैं हर रोज़ कभी मानसिक तौर पर कभी शारीरिक रूप से ख़बर भी नहीं बन पाती कि एक अजन्मा बच्चा भी मारा गया है असमय सदियों से नफ़रत की धधकती आग में हार गया है कोई अभिमन्यु कहीं प्रथम चक्रव्यूह के आने से पहले मुझे पता नहीं क्यों स्मरण आ रहा है वट सावित्री व्रत और वट वृक्ष के चारों ओर परिक्रमा करती सावित्री और सत्यवान को बड़ी निष्ठा से पूजती औरतें और खोज रही हूँ उनमें उस हत्यारी ठकुराइन का चेहरा कि कभी मांगा होगा उसने भी सदा के लिए अपने पति का साथ और अपने वीर पुत्र का सौभाग्य फिर स्मरण हो आए हैं अनायास प्राचीन इतिहास के वे अध्याय कि जानती ...