एक था बुद्धू प्रसाद ।नाम ज़रूर बुद्धू था , पर मेहनत से पैसे कमाना जानता था ।रिक्शा चलाकर पैसे कमाता था और इससे अपने तीन बेटों का पालन- पोषण कर रहा था ।उसकी पत्नी को लगा कि बढ़ते हुए खर्च के मद्देनज़र वह भी काम करे तो बच्चों की पढ़ाई -लिखाई आसान हो जाएगी ।उसने बुद्धू से अपने मन की बात कह डाली ।पहले तो उसे अच्छा नहीं लगा ,परंतु अपनी पत्नी की बात को टाल भी न सका ।आखिर तीन बेटों की स्कूली पढ़ाई का सवाल था।फिर क्या पत्नी आसपास के बड़े घरों में चौका - बर्तन का काम कर पैसे जुटाने लगी । परिवार की गाड़ी अब सही पटरी पर चलने लगी।
एक दिन पत्नी को घर आने में काफी रात हो गई ।पति ने पूछा तो उसने बताया कि मालिक की पत्नी बीमार है ,इसलिए उसकी सेवा में देर हो गई ।यही सिलसिला रोज होने लगा ।एक दिन सशंकित हो जब बुद्धू पत्नी के मालिक के घर पहुँचा तो सन्न रह गया जब उसने पत्नी को रंगे हाथ पकड़ा ।वहाँ कोई परिवार नहीं रहता था ।मालिक अविवाहित था ।उसकी पत्नी ने मालिक के साथ प्रेम होने की बात स्वीकारी।हारकर बुद्धू ने पंचायत बुलाई ।पंचायत ने उसकी पत्नी को अपने पति और बच्चों के साथ रहने को कहा ।परंतु उसने किसी की न सुनी ।बुद्धू ने बच्चों का वास्ता देकर बार- बार अनुरोध किया, लेकिन वह घर छोड़कर अपने मालिक के साथ रहने लगी ।तीन महीने बाद बुद्धू का सब्र टूट गया और उसने घर में फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली ।पति की मृत्यु पर भी उसकी पत्नी ने आना मुनासिब न समझा और न ही अनाथ बच्चों की परवाह की ।
यह कोई कहानी नहीं है , अख़बार में प्रकाशित एक ख़बर मात्र है ।लगभग दस दिन पुरानी ख़बर है ।मैंने जब यह ख़बर पढ़ी और उन दुखी बच्चों की तस्वीर देखी ,तब यही सोचती रही कि क्या यही प्यार है । अगर यही प्यार है तो उन बच्चों के प्रति माँ का प्यार कहाँ है ? यह तो निम्न वर्ग की घटना है । अनपढ़ या कम पढ़ी - लिखी औरत अपने भटकाव को सही मान बैठी हो।पर मध्य वर्ग और उच्च वर्ग में भी ऐसी घटनाएं अक्सर ख़बर बनती रहती हैं ।हो सकता है कुछ नारीवादी इसमें भी औरत की स्वतंत्रता ढूंढकर इसे जायज ठहरा दें । पर ऐसी स्वतंत्रता का अंत कहाँ होता है ? अपने ही बच्चों के प्रति कोई माता इतना अन्याय क्योंकर बैठती है ?क्या एक पराए पुरुष का प्रेम अपने ही जिगर के टुकड़ों के ममत्व पर इतना भारी पड़ जाता है ? पता नहीं बुद्धू कायर था या अपनी पत्नी से ज़्यादा ही प्रेम करता था ,जो अपने बच्चों की परवाह किए बिना अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर ली।
एक तथाकथित प्रेम या बेवकूफ़ी कितनी जिंदगियों को तबाह कर सकता है ,काश इसे बुद्धू की पत्नी जैसे आत्ममुग्ध लोग समझ पाते । यदि यह स्वार्थ ही प्यार है तो लानत है इस पर ।आँखें खोलकर देखें..आसपास..... हाँ , प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं !
एक तथाकथित प्रेम या बेवकूफ़ी कितनी जिंदगियों को तबाह कर सकता है ,काश इसे बुद्धू की पत्नी जैसे आत्ममुग्ध लोग समझ पाते । यदि यह स्वार्थ ही प्यार है तो लानत है इस पर ।आँखें खोलकर देखें..आसपास..... हाँ , प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं !
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