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तितलियाँ ..........रंग बिरंगी उन्मुक्त तितलियाँ .......बचपन से ही सबको लुभाती रही हैं  .... स्कूलों के बाग़ीचे में जब ...छोटे  बच्चे तितलियों के पीछे भागते हैं....तब उनकी मैडमें कहती हैं ....  तितली मत पकड़ो  वरना तुम्हारी शादी नहीं होगी ....हा  हा हा .... वैसे तितलियाँ पकड़ में जल्द आती कहाँ हैं ....तितलियाँ पकड़ना छूटा यानी बचपन छूटा ....और साथ ही वह उन्मुक्तता भी .....कंक्रीटों के जंगल में आदमी ही आदमी नज़र आते हैं ....तितलियों का दीदार कहाँ हो पाता है ....हाँ अगर मौसम सुहावना हो और थोड़ी-बहुत बागवानी का शौक़ हो ....तो अवश्य आती हैं मेहमान बनकर ये शहजादियाँ .....और फिर बचपन की भोली भाली गलियों में पहुँच जाता है दिल .....आज मोबाइल फोन की सुविधा है वो भी कैमरों के साथ ....बस कुछ अनोखा या प्रिय लगा ....कैद कर लो झट से ....मैं इन सर्दियों में एक दिन अख़बार पढ़ते हुए मीठी धूप का आनंद ले रही थी ....तभी मेरी नज़र पड़ी एक सफेद बूटेदार काली तितली पर ....वह बड़ी देर तक गमलों में लगे फूलों पर मंडराती हुई रसपान करती रही......  शायद इसकी वजह स्टीविया का मीठा रस रहा हो ...फिर क्या मैंने अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर लिया उन हसीन लम्हों को  .....

        तितलियाँ उन्मुक्त होती हैं ...शायद इसलिए तमाम बंदिशों के बीच रहनेवाली हम औरतों को भी ख़ूब लुभाती हैं .....तितलियों ...चिड़ियों में हम अपना वजूद तलाशते रहते हैं ....और यह तलाश कभी ख़त्म नहीं होती ....हमें जो अवसर या आज़ादी नहीं मिली ....उसे हम अपनी बेटियों - बहनों को प्रदान करें ...तो शायद तितलियाँ बस हमारे ख़्वाब की बात न रह जाए .....कई हुनर हम सब में है ....जब भी समय मिले ...उस समय का सदुपयोग करते हुए उसे निखारें ....बहुत सारी चीज़ें सिर्फ पैसे के लिए नहीं होती हैं ...अपने वजूद के अहसास के लिए  होती हैं ....आत्मसंतुष्टि के लिए होती हैं ....पंख किसके भी हों .....हमें अपनी उड़ान प्यारी होनी चाहिए ....उम्र की परवाह किए बिना ....बंदिशें टूट रही हैं ....फूल खिल रहे हैं चाहरदीवारियों के भीतर भी ....निस्संदेह तितलियाँ अपना ठिकाना ढूंढने निकल पड़ी हैं ...संकरी गलियों और प्रतिकूल मौसम की  परवाह किए बिना ....बस उन्हें हमारे हौसलों की ज़रूरत है ......

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