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आधी आबादी का नव वर्ष

थोड़े से   रंग हों
थोड़ा से ख़्वाब हों
बिखरे तो उदास न हो
टूटे तो   आवाज़ न हो....

इस ब्लॉग के सभी पाठकों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं  !
हालांकि हर दिन नया होता है हर रात नई होती है ....हर छोटा सा पल भी नया ही होता है ....जब सप्ताह का प्रारंभ सोमवार से ....दिन का प्रारंभ सुबह से होता है ....फिर वर्ष का प्रारंभ भी एक न एक दिन तय होना ज़रूरी होता है ....ग्लोबल दुनिया ने पहली जनवरी को यह तोहफा दिया है ....और इस तोहफे के परस्पर विनिमय से कोई अलग नहीं रह पाता है ....यानी साल के पहले दिन की खुशी मनाकर तरोताज़ा हो जाना किसी धार्मिक गुलामी का प्रतीक नहीं है .

ऐसा नहीं कि हर दुआ... हर शुभकामना पूरी हो ...लेकिन इस बहाने सकारात्मकता का प्रवाह  होना जीवन के लिए शुभ ही तो है ....अब देखिए न ..ऊपर की तस्वीर का गुलाब ...नर्सरी से घर लाने के बाद हाल ही में  पहली बार इसमें कली लगी ....और मुझे इसे देख एक हफ्ते से ऐसा लग रहा था कि यह नए साल का मेरे लिए उपहार होगा ...आज यह गुलाब पूरा तो  नहीं खिल पाया है.. शायद धूप की कुछ कमी रह गई थी इन दिनों...... परंतु अधखिला ही सही ....मेरी उम्मीद को ज़िंदा रखने में कामयाब रहा है .....ऐसा कई बार होता है जीवन में ...हम छोटी उम्मीदों के पूरा होने को मामूली समझ नज़रअंदाज़ कर देते हैं ...और बड़ी उम्मीद के टूटने का बड़ा मातम मनाते हैं ....अगर हम छोटी छोटी उम्मीदों के पूरा होने का जश्न मनाना सीख जाएं ...तो बड़ी उम्मीद के टूटने का ग़म भी स्वतः कम हो जाएगा ....

यह ब्लॉग मैंने महिलाओं और उनकी समस्याओं की आवाज़ उठाने के ध्येय से शुरु किया था ....महिलाएं पहले से मुखर हो रही हैं ....कोई दुनिया एक रोज़ में रूपांतरित नहीं हो सकती है ...महिलाओं के साथ भी यही बात लागू होती है ...यह सुखद है कि कुछ अपवादों को छोड़कर मानसिकता बदल रही है ....बराबरी का सपना बस दिवास्वप्न नहीं है ....इसका श्रेय जुझारू बालिकाओं,युवतियों और महिलाओं के साथ साथ आधी आबादी के सशक्तिकरण में सहयोगी बने पुरुषों को भी जाता है ...चाहे वो घर के अंदर के परिजन हों या फिर चाहरदीवारी के बाहर के परिचित -अपरिचित चेहरे ...
गत वर्ष अपने देश में घटित कुछ घृणित और घोर निंदनीय घटनाओं ने महिलाओं  की सुरक्षा को बहुत अधिक चिंतनीय बना दिया ....यही कड़वी सच्चाई सामने आई कि हैवानियत के लिए स्त्री की उम्र मोहताज नहीं है ....बस स्त्री होना ही किसी स्त्री को शिकार बना देता है ...न गुड़िया सुरक्षित है न सौ बरस की वृद्धा ....खैर इन घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए कठोरतम सजा का प्रावधान ज़रूरी हो गया है ....साथ ही पारिवारिक स्तर पर नैतिक संस्कार को स्थापित करना इससे भी ज़्यादा  ज़रूरी है ....बच्चों में नैतिक संस्कार के निर्माण के लिए भारतीय परिवेश में निश्चित ही महिलाओं की भूमिका अधिक है  ...सिर्फ़ लड़कियों को पाबंदी लगाने की बजाय घर के लड़कों को भी अच्छे संस्कार देकर नारी को सम्मान देना सिखाएं  ...यह समय की मांग है .......
दुनिया बदलेगी ...पर उसके पहले समाज और व्यक्ति को बदलना होगा ....हमारी उम्मीद छोटी छोटी उम्मीदों से मिलकर बनी है ....नए साल में इन छोटी छोटी उम्मीदों के रथ पर सवार होकर निकले हैं हम ....सफ़र लंबा है ....फिर मिलेंगे किसी उम्मीद के टूटने पर या पूरा होने पर ...सुख दुख बांटकर ... नई दुनिया का सपना ज़िंदा रहे जहाँ भय का नामो-निशान  न हो ....आदमी आदमी की शक्ल में ही मिले ...भेड़िये की शक्ल में नहीं !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
1/1/2018



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