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जींस - मोबाइल, ना बाबा न !

जींस - मोबाइल  ....ना बाबा ना !

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ना बाबा ना 

हम हैं 

बड़ी संस्कारी लड़कियाँ  

पिता के माथे की लाज बेटियाँ 

हम वही अपनाएंगी जो तुम रटाओगे 

तुम ठहरे शिक्षक बड़े ज्ञानी 

माँओं  और दादियों ने पहनी थी साड़ी 

अब हमारी  है बारी  

साड़ियों ने की है इतनी मेहरबानी  

द्रौपदी की लाज बचाई या उतारी 

पता नहीं फिर भी सुंदर कहानी  

मोबाइल भी नहीं रखेंगे 

वरना बिगड़ जाएंगी हम  

बस लड़कों को बिगड़ने दो 

क्योंकि यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार है

 और देखो न अगर मोबाइल रख लिया अपने पास 

तो टूट जाएगा तुम्हारे द्वारा फैलाया गया बहुत सुन्दर भ्रम 

कि तुम्हारी स्मृतियों और धर्मग्रंथों  के अनुपालन वाली दुनिया बहुत सुन्दर है 

और हम देख लेंगी तुम्हारे जानवरों के घृणित वीभत्स कुकर्म  

कि  एक साल की गुड़िया नहीं महफ़ूज इस नरक में 

और शर्म -लाज से बहुत ऊपर उठ चुकी

सौ साल की बूढ़ी औरत  के जीवित जिस्म को भी 

बिना पंखों वाले गिद्ध नोच डालते हैं बेरहमी से  

हे शिक्षकों  

बचा क्या रहा है अब ढँकने को 

अपने लड़कों को सिखाओ न 

कि भेड़िये और गिद्ध की जगह बस आदमी बने रहें 

ढँकना चाहो तो ढँकों उन काले पन्नों के बदरंग हो चुके टुकड़ों को 

जिसे कब का फाड़ आईं हवा में उड़ती हुई  बहादुर लड़कियाँ  

तुम्हारी आदिम दुनिया के काले पड़ गए धुओं  को  

उम्मीद की किरण सी चीरतीं हुई  फर्राटेदार लड़कियाँ 

पढ़ाओ उनकी कामयाबी के किस्से 

और शपथ दो उनकी वीरता के  

पहनाओ जूडो - कराटे  के बेल्ट 

मत लिखो हर रोज़ हास्य रस के फूहड़ चुटकुले 

परिधानों के अलावा 

उनकी चारदीवारियों के भीतर 

अलगनी पर टंगी हैं बहुत सी बंदिशें 

बस उन्हें इंतज़ार है 

किसी तूफ़ान का  !

-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना 

*आश्चर्य जनक एवं निराशाजनक ख़बर पर मेरी अभिव्यक्ति ...कि एक शिक्षक दिनेश कुमार  ने ऐसी शपथ नौवीं -दसवीं कक्षा की छात्राओं को दिलाई कि वे जीन्स जैसे भड़काऊ परिधान एवं मोबाइल का उपयोग नहीं करेंगी... क्योंकि इससे महिलाओं के प्रति अपराध होते हैं .....मेरा मानना है कि कोई भी परिधान सही ढंग से नहीं पहना जाए तो फूहड़ लग सकता है चाहे वह साड़ी क्यों न हो ...इसके लिए समय के अनुकूल शिक्षा की ज़रूरत है न कि तालिबानी आदेशों और शपथों  की ।धन्यवाद। 

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