नब्बे बरस ....कम नहीं होते किसी की ज़िंदगी के लिए .... सारे अनुभवों से परिपूर्ण परिपक्व आदमी ....भारत में अपना रेडियो 90 बरस का हो चुका है ....23 जुलाई 1927 को इसने जन्म लिया था मुंबई में ...और तकनीक के एक नए उपहार से भारतवासी परिचित हुए ....तब से अब तक का सफर कितना मुश्किल रहा होगा... कहने की ज़रूरत नहीं ....हम सबने या तो कुछ फिल्मों में पुराने समय के रेडियो का दीदार किया है या फिर अपने घरों में दादी नानी के जमाने के सहेजकर रखे गए रेडियो को छूकर ....हमसे बाद की पीढ़ी जो मोबाइल में रेडियो को सुनती है.... उसके लिए पुराने ज़माने का रेडियो किसी कौतुहल से कम नहीं है ....खैर भारतीय रेडियो यानी आज के आकाशवाणी का जन्मदिन है तो कुछ यादें स्वतः उड़ती चली आती हैं
....बचपन में होश संभाला तो घर में रेडियों की ध्वनि भी पारिवारिक सदस्य की तरह थी .... मेरे पिताजी रेडियो पर सुबह -शाम प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय समाचार अवश्य सुनते थे ....उनके इस रेडियो प्रेम के सौजन्य से हमारा परिचय देवकी नंदन पांडे, विनोद कश्यप ,इंदु वाही ,हरी संधू,संजय बनर्जी जैसी दिग्गज आवाज़ों से हुआ ....जब मैं सात -आठ साल की हुई ,तब पिताजी मुझसे हिन्दी समाचार- पत्र का वाचन करवाते ....स्कूल में भी मुझे अक्सर क्लास में किसी पाठ के रीडिंग का मौका मिलता ...इस तरह बोलकर पढ़ना एक शौक़ बन गया जो आगे अकादमिक परीक्षाओं में भी काम आया ....बचपन में ही पटना स्टेशन से 'बाल मंडली' कार्यक्रम प्रसारित हुआ करता था जिसमें हमारे मुहल्ले के कुछ बच्चे भाग लेने जाया करते थे ...कभी- कभी वे हम भाई -बहन से पहेली या कविता पूछने आते थे ताकि वे कार्यक्रम में सुना सकें ...इस तरह हम भी उत्सुकतावश रेडियो से भावनात्मक रूप से जुड़ते गए ...जब वे हमारे द्वारा बताए अनुसार कुछ बोलते तो हमें भी बहुत खुशी होती थी
काॅलेज के दिनों में मेरे भैया ,(जिन्होंने आगे चलकर चौपाल में रमेसर भाई का किरदार भी निभाया) युववाणी कार्यक्रम में शामिल होने लगे थे ....उनके पीछे -पीछे मैं भी कुछ वार्ताएं लिखकर भेजने लगी ...और अपनी आवाज की रिकार्डिंग कराने का मौका मिला ....पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा का रिजल्ट आने ही वाला था तभी आकाशवाणी में कैजुअल समाचारवाचक/ संपादक की वैकेन्सीज आईं ...पहले लिखित परीक्षा और फिर साक्षात्कार में शामिल हुई ....परीक्षा भी पास कर गई ....इस तरह बचपन का एक सपना पूरा हुआ ....मैं उड़ते हुए जब दिल्ली स्थित आकाशवाणी भवन पहुँची और हिन्दी न्यूज रूम के उन दिनों के वर्तमान दिग्गजों हरी संधू ,आशुतोष जैन ,अखिल मित्तल,राजेंद्र चुघ , शुभ्रा शर्मा ,आशा निवेदी, कनकलता ,लवलीन निगम आदि को देखकर जैसे कृतार्थ हो गई ....नियमित सुनी हुई आवाजें हमारे सामने थीं और हम उन्हें और उनके कार्यों को सीखने समझने की कोशिश में लगे रहे ...सबसे ज्यादा मार्गदर्शन हरी संधु सर से मिला ....वे समाचार को स्वाभाविक रूप से बोलने पर बल देते हैं और जूनियर्स को अपेक्षित स्नेह और महत्व भी ...नए एंकर्स को ज़्यादातर ड्यूटी विदेश सेवा के समाचारों के लिए होती थी या फिर राष्ट्रीय समाचारों के संपादन के लिए ... हालांकि उन्हीं दिनों अपने मातृत्व के कारण सभी सीनियर्स के सान्निध्य का अपेक्षित लाभ नहीं उठा पाई ...आकाशवाणी के नेशनल चैनल पर भी कुछ परिचर्चाओं की एंकरिंग का काम मिला और उसे बखूबी निभाया मैंने ...फिर पति महोदय के स्थानांतरण के कारण मुझे दिल्ली छोड़नी पड़ी और रेडियो की वह अनमोल दुनिया भी ...अब भी गर्व होता है आकाशवाणी से जुड़ाव पर .....ख्वाहिश है कि फिर कभी उस सुरीली -पुरानी दुनिया से जुड़ सकूँ और उसकी सेवा का सौभाग्य पुनः प्राप्त कर सकूँ ....रेडियो का युग हमेशा बना रहे और हमारा 'आकाशवाणी ' सदा 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय 'के पथ को आलोकित करता रहे !
-सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
23/07/2017
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