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भारतमाता के देश में

भारतमाता के देश में........................ ???????????????????????????? वे घोड़े नहीं जो बार - बार चाबुक चलाया जा रहा है वे भूली नहीं हैं जो मनुस्मृति  दोहराया जा रहा है वे हथियार नहीं जो राजनीति चमकाया जा रहा है वे अगरबत्ती नहीं कि पूजाघर महकाया जा रहा है वे कठपुतलियाँ नहीं जिन्हें मनमर्जी नचाया जा रहा है बेचने को है बहुत कुछ पर उन्हें बाज़ार बनाया जा रहा है वे औरते हैं हुजूर आज भी सिर्फ़ उन्हें अनुशासन का पाठ पढ़ाया जा रहा है सुना है ज़ोर से आजकल मेरा देश बदला जा रहा है -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना

नीले बॉर्डर के तले

फोटो साभार :AIR नीले बॉर्डर के तले  ----------------------------- प्यार की भूख  रोटी की भूख से होती है बड़ी  यही कहा था  उस ' निर्मल हृदय ' ने   जिसने उठाए थे सड़कों से  बेसहारा, अनाथों और ग़रीबों को  और अपनी एक -एक थपकी से  जीत लिया था मन सारी दुनिया का  नहीं बन पाता है हर कोई  उस नीले बॉर्डर वाली साड़ी जैसा ममत्व  की छाँव  जिसके लिए खुले हों हर पल कोई न कोई ठाँव  उसकी निश्छल मुस्कुराहट नहीं सीख पाईं  वे विश्व सुंदरियाँ भी  जिन्होंने लेकर उसका रटाया हुआ नाम  जीत लिए सुंदरता के सबसे बड़े तमगे  पर बन न पाईं वास्तव में उस जैसा सुंदर  उस पर फेंके गए आरोपों के पत्थर  पर वो चलती रही  सड़कों पर बिखरे 'कूड़ों 'को  अपने विशाल दामन में समेटे  क्योंकि असली 'संत ' खिलते रहते हैं  बेपरवाह फूल की कली* बनकर  बिखेरते हुए अपनी सुगंध ---------------------------------------- -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना *गोंझा का अर्थ होता ह...

यही वो समय तो है

यही वो समय तो है  --------------------------------- सूरज की ख़्वाहिशें हैं घर -घर  कोई पागलों -सा हर आहट पे चौकन्ना हो जाता है ढूंढता है अपनी उम्मीद के कदमों के निशान पर निराशा ज्य़ादा बलवान है  हताशा हताशा ...... और वह गला घोंट देता है  ज़मीन फोड़ ऊपर आने को आतुर नवांकुर का  कुछ सपने फिर अट्टहास करने की सजा  मृत्युदंड पाते हैं  बदलियाँ नागिन का भयानक रूप धर लेती हैं   चंदा को बार बार डँस लेती हैं  यानी तय है कि सूरज की आस में  चंदाएं हर रोज़ मारी जाती हैं  इतनी अंधेरी रातों में जब सो जाती है  बाक़ी दुनिया अपने - अपने दरवाजे़ बंद कर  कोई न कोई दरवाज़ा हर रात खुलता है  श्मशानों से बची रह गई कुछ चंदाएं   चमका देती हैं  घुप्प काला आसमान   एक साथ खुल उठते हैं दरवाज़े   कि  सूरज  का स्वागत कर लें   गूंज उठते हैं जयकारे    सारी लेखनियाँ  बन जाती हैं भांट -चारण   चंदाओं में भी सूरज -सा तेज आ गया है  ...

वो सोलह साल

वो सोलह साल --------------------------------------------- तुम परिंदा थी, कैद में रही  तुमने उजाले की तलाश की  पर अंधेरे में अपने स्वर्णिम दिन काटे  दमन था उन फिज़ाओं की निशानी  जिसने लिख दी तुम्हारी  यह कहानी  चूड़ियों के ख़्वाबों को दरकिनार कर  रचा किसी तपस्विनी सा  तुमने  अपनी ज़िन्दगी का महाकाव्य  और कैसे चलती रही  निरंतर शांत बग़ावत  इक सफेद कबूतर का  निर्मम बहेलियों के घर में  ही   सोलह साल  हाँ, पूरे सोलह साल  कम नहीं होते  वो क्या जानें फैशन ढोनेवाले    जिन्हें आदत है शहादतों के बहाने  चौराहे पर बनी आलीशान मूर्तियों को  झूठे आँसुओं के संग नकली माला पहनाने की  हाँ, तुम सही हो  क्योंकि अब भी तुम्हारे साथ हैं वे लोग जिन्हें बुत नहीं चाहिए  ज़िंदा लड़ाके की दरकार है  तुम मेहंदी रचाओ सफेद हाथों में  लिखो  चटक लाल रंग का नाम अपने प्रियतम का अपनी मांग सजाओ बचे हुए सितारों से तुम्हें भी हक़ ...

विंडो शॉपिंग

विंडो शॉपिंग ~~~~~~~~~~~~~~   फेसबुक पर  स्त्रियाँ  जो  हाय ,हलो या बेवज़ह चैटिंग का  नहीं देती जवाब  सनकी और घमंडियाँ  होती हैं  फेसबुक पर स्त्रियाँ जो  नहीं देती किसी पुरुष से जुड़ी अपनी पहचान  टूटे हुए घर की  बदमिज़ाज बदलियाँ  होती हैं  फेसबुक पर स्त्रियाँ जो     बदलती हैं रोज़ अपनी तस्वीरें   बदचलन टाइप की  आवारा तितलियाँ होती हैं  फेसबुक पर स्त्रियाँ जो   खाना - पकाना डालती हैं   उन्हें आता -जाता क्या है  बस बहनजीवालियाँ  होती हैं  फेसबुक पर स्त्रियाँ जो  तीखी ज़बान चलाती  मर्दों की सामंती सत्ता को ललकारती हैं    वे मूर्ख  परकटियाँ  होती हैं   हाँ, यही कहा करते हैं  मर्द वे  जिनकी खुद की स्त्रियाँ   नहीं होती हैं फेसबुक पर  या जिन्हें उनके नहीं होने का  सुंदर भ्रम  होता है   सचमुच, उनके लिए   फेसबुक की सारी स्त्रियाँ   चमचमाते भू...