पिंपल्स ---------------------- जैसे किसी पक्की सड़क पर तुम टूटे - फूटे बरसाती गड्ढे थे या फिर मरम्मती के बाद दूर से दिखते पैबंद लगे काले भद्दे धब्बे पर पिंपल्स तेरा बहुत शुक्रिया कि ढूँढ़ते थे जो कौए बेदाग़ चाँद उनसे दूर रह गया मेरा बेदाग़ अंतर्मन ज़िन्दगी ने बेवज़ह नहीं बाँध दी उनसे मेरा पल्लू तुम आते रहे जाते रहे इस चेहरे पर अपनी करामात दिखला 'फर्स्ट इंप्रेशन'को दूर भगाए रहे पर उनके अस्वीकार से मैं निखरती रही हर बार दिनोंदिन अंदर ही अंदर बहुत ज़्यादा अपनी बदसूरती की क़ब्र पर सपनों के ताजमहल गढ़ते हुए । -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना 27/7/16