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पिंपल्स

पिंपल्स ---------------------- जैसे किसी  पक्की सड़क पर तुम  टूटे - फूटे बरसाती गड्ढे थे या फिर मरम्मती के बाद दूर से दिखते  पैबंद लगे काले भद्दे धब्बे पर पिंपल्स  तेरा बहुत शुक्रिया कि ढूँढ़ते थे जो कौए बेदाग़ चाँद उनसे दूर रह गया मेरा बेदाग़ अंतर्मन ज़िन्दगी ने  बेवज़ह नहीं बाँध दी  उनसे मेरा पल्लू तुम आते रहे जाते रहे इस चेहरे पर  अपनी करामात दिखला  'फर्स्ट इंप्रेशन'को  दूर भगाए रहे पर उनके अस्वीकार से मैं निखरती रही हर बार दिनोंदिन अंदर ही अंदर बहुत ज़्यादा अपनी बदसूरती की क़ब्र पर  सपनों के ताजमहल गढ़ते हुए । -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना 27/7/16

यह ग़ज़ब समय है

यह ग़ज़ब समय है कि फेंके जा रहे हैं पत्थर किसी के भी मकान पर उतारे जा रहे हैं स्त्रियों के चरित्र के कपड़े सरे बाज़ार महज़ इसलिए कि उन्होंने नहीं उतारी तुम्हारी आरती और नहीं गाया तुम्हारा प्रशस्तिगान सुबहोशाम उनकी रही गुस्ताख़ी कि वे चलीं  उन रास्तों पर जिनपर चलने की पाबंदी रही सदियों तक हो सकता हो उन्होंने तुम्हारे फ़रमानों पर न किया हो अमल या दिया हो तुम्हारे बेसिरपैर क़ानूनों में दखल पर ऐसा भी क्या कि जहाँ देवियाँ पूजी जाती रही हों वहाँ किसी भी औरत को पहनाया जाने लगे वेश्या या रंडी का थू -थूदार  सामंती तमगा ऐसा लगता है कि तुम "उनकी" सोहबत में ज़्यादा रहते हो इसलिए विरुद्ध दिखनेवाली हर स्त्री को वेश्या कह रहे हो यह पहले असभ्य लोगों की फूहड़ बोली कहलाती थी अब क्यों सियासत की गली में रानी बन इठलाती जा रही है  ...... -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना

बायोडेटा (वैवाहिक)

बायोडेटा (वैवाहिक) ******************* नाम लड़की उम्र माफ़ करना षोडशी नहीं रही कद पुरूष से छोटा रंग पानी -सा योग्यता तितिक्षा शौक़ पुरुषोचित छोड़कर ज़िन्दगी रामभरोसे लक्ष्य वंशवर्द्धन शर्म आती है मगर यही रटाया है सबने पता पिंजड़े का कोई स्थायी पता नहीं होता विशेष जानकारी लेनी हो तो 'त्रिशंकु' से पूछ लें..... -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना 14 जुलाई, 2016

कुछ भी तो कहो

अब  कुछ देखो  तो कुछ कहो न  तब मूँछें छोटी हों या बड़ी  खूब रौबदार चौकीदार थीं  अब न गांधारी बनना है  न गूंगी का  अभिनय करना है  वक़्त छले जाने का बीत गया है   -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना

ख़ूबसूरत

ख़ूबसूरत ******** वक़्त के साथ बदल जाते हैं सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी और अगर ग़ौर से देखो तो बदल जाते हैं अपने अपने भगवान और बदल जाते हैं उन्हें खुश करने के तरीके फिर औरत तो हाड़ - मांस का आदिम टुकड़ा है न ताउम्र सागर तलाशती बहती बावरी नदी का दुखड़ा है न किसी ने जब अपनाया तो वह जान पाई कि वह भी ख़ूबसूरत है तमाम दाग़-धब्बों के बावजूद वह भी चाँद की शायद मूरत है हाँ, हो सकता है...तब वह परी दिखती रही हो क्योंकि कहते हैं लोग कि पहली मुलाक़ातों में अधिकांश औरतों के पास जादू की छड़ी होती है वक़्त के दिए हर ज़ख्म को ढोया अपनी नाजुक पीठ पर और चलती रही पगडंडियों और राजपथ पर वही हाथ थामे - थामे नन्ही किलकारियों का सुख ढोना भी ज़िन्दगी का निहायत ज़रूरी हिस्सा था आँखों के नीचे हर रोज़ बढ़ते काले पहाड़ पर  हांफकर चढ़ाई करके रात और दिन के बीच लुढकते - चढ़ते  देह बन गई पुरानी  उघड़ती फुटबॉल माथे पर लिख दिया अनवरत खेलती जिम्मेदारियों ने कभी न मिटनेवाली अनगिनत झुर्रियों के भूतहा खौफ़नाक नाम अब हर कोई माधुरी दीक्षित नहीं हो सकता न बरसाती रहे कृपा बोटाॅक्स की झुर्रीह...