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ओह ......ये कामवालियाँ !


ओह...ये कामवालियाँ !


दाई...बाई ...या कहो
कामवालियाँ
वो देखो आ रहीं हैं
सुबह- सुबह
अपने हाथों को भांजकर 
जोर- जोर से बतियाते
अपनी अलग -सी पहचान लिए
अपनी कछुए वाली पीठ  पर
कई आकाश ढोते हुए ।
×     ×    ×     ×    ×    ×    ×

उन्हें देखते ही
मेमसाहबों के चेहरे खिल जाते हैं
इत्मीनान है
चलो आ तो गईं
निपट जाएंगे
झाड़ू-पोंछा, बर्तन
और अलग से भी कुछ काम
मक्खियों की भिनभिनाहट तो होगी
रोज़ की तरह
×   ×     ×     ×    ×      ×     ×

आते ही कामवालियाँ
फटाक से
घुस जाती हैं
' पवित्र ' रसोईघर में
बर्तनों पर छूट गए साबुन के दाग़ से
डाँट भी खाती हैं
कभी चुप रहती हैं
कभी उबल पड़ती  हैं
चूल्हे पर चढ़ी चाय के साथ
×   ×     ×     ×    ×      ×     ×

बरामदे से शुरू कर
घर  के आखिरी कमरे तक
पोंछा लगाती जाती हैं
पर उन घरों के बाथरूम
नहीं होते उनके लिए बने
अघोषित पाबंदी सी है
इसलिए दबाए रखती हैं अपना पेट
काम खत्म होने पर
तलाशती हैं सुनसान जगह
बाहर सड़क पर
या घर के पिछवाड़े
सोचती हैं पता नहीं
कितनी गंदगी चढ़ जाती है 
बदन पर उनके
अभी अभी तो महकाया  था
पूरे घर को हमने ही
'जैस्मीन वाले लाइज़ोल ' से ।
×     ×     ×    ×     ×     ×    ×


कामवालियों के 'आदमी '
प्रायः होते हैं दारूबाज
पी जाते हैं बोतलों में
घरवाली के पगार
अक्सर दिखातीं हैं वे
ऊपर से खूब सुखी दिखती
अपने पिया की प्यारी 
सजी-धजी मेमसाहबों से
शरीर उघाड़कर 
अपने ही 'परमेश्वर 'से खाए गए
चोटों और घावों के निशान

बेटी बीमार है
बेटा लाचार है
कहती हैं तो लगता है
यही हमेशा
कर रहीं हैं फिर से बहाना
पर नहीं दिखाई पड़ता
उनकी आँखों के नीचे
उनके हिस्से का काला पहाड़
जिसके नीचे रोज़ दबती जाती हैं वे
चट्टानों के छोटे -बड़े टुकड़ों के संग
टूटकर इधर- उधर बिखरती जाती हैं

×     ×     ×       ×       ×      ×      ×   

एक कामवाली  आती थी दिल्ली में
बेगूसराय की रहनेवाली
सुबह साढ़े सात बजे
दरवाज़ा खोलते ही
उसके साथ 
उसकी चौड़ी हँसी भी
दरवाज़े   के अंदर दाखिल हो जाती थी
उसके फटे होठों से चलकर
मेरे उनींदे चेहरे पर 
खरगोशी छलांग लगा कूद जाती थी
और फिर मेरे अभी - अभी खिले चेहरे से
शिशु चिड़िया की ताज़ी उड़ान भर
मेरे बच्चों के मुखमंडल पर
धड़ाम से बैठ 
चिपक जाती थी
दिनभर के लिए

हालांकि उसके फटे होठ
सालों भर फटे दिखते थे
फुर्सत में सुनाते थे अक्सर
मेरे गहरे कानों को 
शायद अपनी अंतहीन पीड़ा
कि बेटी भाग गई थी
घर से दो साल पहले
आज तक नहीं है
उसकी कुछ ख़बर।
×     ×      ×     ×     ×    ×     ×
                सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
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