सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

चींटियाँ

चींटियाँ

  पिछले दो-तीन दिनों से चींटियों ने काफ़ी परेशान कर रखा हैं।रोटियों का डब्बा हो या दालों के कंटेनर........सर्वत्र इनकी उपस्थिति।शायद यहाँ पेड़-पौधों के आधिक्य के कारण इनके भिन्न- भिन्न रूपों का दर्शन सुलभ है।जो भी हो, इसी बहाने मुझे याद आई....वर्षों पूर्व लिखी यह कविता.....जो चींटियों (या किन्हीं औरों) के वज़ूद और संघर्ष की तस्वीर रचने की एक छोटी कोशिश है।



चींटियाँ

वे जब तक संतुष्ट रहीं
मरे पड़े कीड़े - मकोड़े खाकर
हम इठलाते रहे अपनी बुद्धि पर
धीरे - धीरे उनकी नज़रें ललचाईं
वे बढ़ने लगीं चीनी के दानों
और स्वादिष्ट मिष्ठानों की ओर
यह गुस्ताखी हम सहन नहीं कर पाए
क्योंकि हमारी धमनियों में
बड़ी तेज़ रफ़्तार से दौड़ रहा था
चटकदार लाल सामंती लहू
हमने काट डाली कुछ की ज़बानें
कुछ के सूक्ष्म पांव
और कई को ज़िंदा जला डाला
बाकी इस तरह डरीं सहमीं
कि सदियों तक बेज़बान रहीं।

पर आजकल तो गज़ब हो रहा है
उन्हें भी मिलने लगी है
हम जैसे स्थापित मानवों जैसी बुद्धि
उन पर साक्षरता कार्यक्रम शायद
असर कर गए हैं
इसलिए हो रही हैं राजनीति में भी माहिर
उनकी कतारबद्ध सेना बना रही है
चक्रव्यूह हर ओर
रसोई के डिब्बों में
खाने की मेज़ पर
आलीशान दीवारों पर, बिस्तर के सिरहाने
यहां तक कि हमारे कपड़ों पर भी
सुना है हिसाब लेने आ रही हैं
अब तक हमारे पैरों तले रौंदे गए साथियों का।

वे भूल रही हैं हमारा गुलीवरपन
और यह भी कि -
हमारे हाथ आजीवन लंबे रहे हैं
क़ानून के लंबे हाथों से भी
हम अट्टहास कर रहे हैं
और अगले ही पल हमारी गुलीवरी उंगलियाँ
मसल दे रही हैं
उन्हें पहले की तरह
उनकी सेना हताश हो
तितर- बितर कर भाग रही है
हम बहुत प्रसन्न हो रहे हैं
यह देखकर कि
हमारी नाक उतनी ऊंची है अब भी
जितनी दीवार पर लगी
तैलचित्रों में हमारे पूर्वजों की।

परंतु सावधान!
गुलीवर हमेशा विशालतम नहीं होता
और चीटियां हमेशा पिद्दियां नहीं
उनकी धमनियों का लहू भी
अब रफ़्तार पकड़ने लगा है
इसलिए चलने लगी हैं सिर उठाकर
नहीं जाने देंगी अब और
अपने हिस्से की मिठाइयां
करेंगी हमला मदमस्त हाथियों पर
हम कर भी नहीं पाएंगे
अपने किए पर
थोड़ा - सा पश्चाताप !

@ सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बड़े घर की लड़की

बड़े घर की लड़की  अब वह भी खेल सकती है भाई के सुंदर खिलौनों से  अब वह भी पढ़ सकती है भाई के संग महंगे स्कूल में  अब वह भी खुलकर हँस सकती है लड़कों की तरह  वह देखने जा सकती है दोस्तों के संग सिनेमा  वह जा सकती है अब काॅलेज के पिकनिक टुअर पर  वह रह सकती है दूर किसी महानगरीय हाॅस्टल में  वह धड़ल्ले इस्तेमाल कर सकती है फेसबुक, ह्वाट्सएप और ट्विटर  वह मस्ती में गा  और नाच सकती है फैमिली पार्टी में  वह पहन सकती है स्कर्ट ,जीन्स और टाॅप वह माँ - बाप से दोस्तों की तरह कर सकती है बातें  वह देख सकती है अनंत आसमान में उड़ने के ख़्वाब  इतनी सारी आज़ादियाँ तो हैं बड़े घर की लड़की  को  बस जीवनसाथी चुनने का अधिकार तो रहने दो  इज़्ज़त-प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी ऊँचे खानदान की  वैसे सब जानते हैं कि साँस लेने की तरह ही  लिखा है स्वेच्छा से विवाह का अधिकार भी  मानवाधिकार के सबसे बड़े दस्तावेज में ! ---------------------------------------------------

मातृभाषा दिवस आउर भोजपुरी

ढाका स्थित शहीद मीनार तस्वीरें गूगल से साभार  विश्व मातृभाषा दिवस की ढेरों बधाइयाँ ....... ------------------------ हमार मातृभाषा भोजपुरी रहल बा .....एहि से आज हम भोजपुरी में लिखे के कोशिश करतानी । मातृभाषा आ माई के महत्व हमार ज़िंदगी में सबसे जादे होखेला..... हम कहीं चल जाईं ......माई आ माई द्वारा सिखावल भाषा कभी न भूलाइल जाला...... हमार सोचे समझे के शक्ति हमार मातृभाषे में निहित हो जाला.....  हम बचपने से घर में भोजपुरी बोलेनी ....लेकिन लिखेके कभी मौका ना मिलल.....हम दोसर भाषा वाला लोगन से छमा मांगतानी ....लेकिन भोजपुरी भी देवनागरी लिपि में लिखल जाला ....एहि से आस बा कि जे हिंदीभाषी होई ओकरा समझे बूझे में दिक्कत ना होई. आज 21 फरवरी हs .....विश्व मातृभाषा दिवस..... हमनी के कृतज्ञ होके के चाहीं 1952 के पूर्वी पाकिस्तान आ ए घड़ी के बांग्लादेश के उ शहीद आ क्रांतिकारी नौजवानन के .....जिनकर भाषाइ अस्मिता के बदौलत आज इ दिवस संसार भर में मनावल जाता..... बांग्ला भाषा खाति शुरू भइल इ आंदोलन अब 1999 से विश्व भर में सांस्कृतिक विविधता आउर बहुभाषिता खाति मनावल जाला....अभिय...

कथनी -करनी

दिल्ली हिन्दी अकादमी की पत्रिका 'इंद्रप्रस्थ भारती' के मई अंक में प्रकाशित मेरी कविता  :"कथनी -करनी "