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ज़द्दोज़हद

ज़द्दोज़हद  ************ आह बरसाती रात  किसी के लिए मधुमास  भींगने और पुलकित होने का वरदान  चाँद की लुकाछिपी में  असीमित भावनाओं का ज्वार  ! उफ्फ बरसाती रात  कहीं जीवन हेतु संघर्ष अविराम  नदियों का राक्षसी उफान  और डूबा हुआ सारा घर-बार  सड़क पर सिमटाए अपना जहान  खाट- मचान पर शरण लिए इंसान  नीचे साँप की फुफकार  नीम हक़ीम डॉक्टरों  के  लिए आई बहार ! उफ्फ बरसाती रात  वही पापी पेट का सवाल  आई तो थी दिन में उड़नखटोले से  राहत सामग्री आज  कल फिर  आए भी तो क्या  टूट पड़ेंगे और लूटेंगे बलशाली हाथ  जो जीतेंगे हमेशा की तरह सिकंदर कहलाएंगे  बहाएगी फिर से सपने चंगेज़ी धार  ! उफ्फ बरसाती रात  झींगुरों का अलबेला सिंहनाद  बड़े बन गए हैं बेजुबान  बच्चे भी समझ ही जाते हैं  पर जनमतुए कहाँ मानते हैं  रह रहकर दूध के लिए अकुलाते हैं  माँ की सूखी छातियों की टोह लेकर झल्लाते  मचा रहे व्यर्थ ही शायद हाहाकार ! ओह बरसा...

कथनी -करनी

दिल्ली हिन्दी अकादमी की पत्रिका 'इंद्रप्रस्थ भारती' के मई अंक में प्रकाशित मेरी कविता  :"कथनी -करनी "

पुत्र रत्न !

पुत्र रत्न ! ☆☆☆☆☆☆☆ नौ महीने का कर्ज़  उसने कैसे भुलाया होगा  कई - कई  रातों को उसने जगाया होगा  जन्म पे जिसके इतरा कर इक अभागी माँ ने  पूरे मोहल्ले में लड्डू बँटवाया होगा  हर भूख पे वह जब अकुलाया होगा माँ को उँगलियों से टटोला होगा  अभी -अभी सोई आँखों को भी  गीले बिस्तरों ने अक्सर जगाया होगा  अपने बेवक्त  हँसने या रोने से भी  थके चेहरे को हौले -से मुस्कुराया होगा  उसकी नन्हीं उँगलियों को पकड़कर  गिर -गिर कर चलना सिखलाया होगा  हाथ थामकर उसका  नई पेंसिल से  ककहरा लिखना बतलाया होगा  वक़्त के साथ -साथ पहली पाठशाला में माँ ने ज़िंदगी का हर पाठ पढ़ाया होगा  बड़े अरमानों से भेजा होगा कलेजे के टुकड़े को  कहीं दूर सपनों को गढ़ने की ख़ातिर बारंबार   अपने आँचल के एक कोने को  अहिस्ता - अहिस्ता बूढ़ी होती माँ ने  लुढकते गर्म आँसुओं से भिगोया होगा  खोजे होंगे फिर बूढ़ी आँखों ने चाँद बड़े नेह से नाच -गाकर  ढोल की थाप पर  दुनिया की '...

सौन्दर्य - परख

"सौन्दर्य - परख"