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एक और इंदिरा. ......

एक और इंदिरा........ ------------------------------------------------------------- 19 नवंबर 2012.....बिहार के प्रसिद्ध छठ पर्व के सायंकालीन पहले अरग का दिन.....ऑपरेशन थियेटर में ऑपरेशन से पूर्व इसकी तैयारी करने वाले स्टाफ.....जच्चा का उत्साह वर्धन कर रहे थे....अपने काम के साथ साथ. ...'अच्छा आप रेडियो में काम करते हो'......आर जे हो ?.....नहीं ,न्यूज रीडर हूँ. ...ओके, कभी हमें भी ले चलिए.....ये दूसरा बेबी है ? हाँ....पहले से गर्ल चाइल्ड है? हाँ.........आज आपके यहाँ का पर्व है न ? देखना आपको बेटा होगा......और उसने बिना कुछ कहे मुस्कुरा दिया हल्के से।                 हल्की सी चेतना के बीच.... ऑपरेशन सक्सेस होने की सूचना मिली.....पर एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया.....बात क्या है......किसी ने मुझे औपचारिक सूचना नहीं दी....बेबी स्वस्थ तो है न....उसी हालत में मुझे तरह तरह की आशंका होने लगी...पर पूछा नहीं पा रही थी पीठ के बल लेटे हुए.....शरीर के साथ होठ भी असमर्थ हो गये थे शायद....कुछ देर बाद सन्नाटे का रहस्य आखिर खुल ही गया.....सामने मेरी आँखों के ....

बीती सदी का बचपन और हमारे हिस्से के खेल

बीती सदी का बचपन और हमारे हिस्से के खेल ---------------------------- उन  दिनों चाँद सितारों जड़ित खुला आसमान 'उनके' लिए था हमारे हिस्से में चूड़ियों के भीतर की परिधि का विधान था जन्म लेते ही निर्धारित हो चुके थे ज़िन्दगी के अनगिनत चक्रव्यूही फेरे सजाए गए घरौंदे में दिखलाए गए सुंदर चाहरदीवारियों के लंबे घेरे गुड्डे- गुड़ियों के खेल में समाहित थे रसोई के काम कराए गए ज़िंदा गुड़ियों को कड़ाही-कलछी की पहचान हर दिन संस्कारों  की निकलती थी नई परिभाषा खेलकूद में हिस्से को तरसती रहीं दिन ब दिन निखरतीं गृहशोभा रातों को उड़ती रहीं देखकर चिड़ियों की लंबी उड़ान उजालों की सड़क पर  सायकिल चलाना भी था अपराध उस समय अपने हिस्से के खेल सिर्फ़ खेल थे कठपुतलियाँ कहाँ जानती हैं उंगलियों का मकसद बाद में जब होश आ ही गया घड़ी की सूइयों की बुढ़िया चाल में तब जवां चाबियों ने खोले बंद खंडहरों के राज़ कि क्लास में फर्स्ट आने से ज़्यादा क्यों मिलती थी शाबाशी बेसन के हलवे ठीकठाक बना लेने पर और यह रहस्य भी कि लड़कियों के खिलौने क्यों होते थे अलग बंदूकों, गाड़ियों और हेलीकॉप्...

ज़िन्दगी फिर से

थोड़ा सा रंग चुरा लेगी तो  रंगीन हो जाएगी ओढ़नी उसकी  सुना है बहुत उदास रहती है वो लड़की जिसका नाम हुआ करता था कभी ज़िन्दगी -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना