वर्जित नहीं हैं हमारी आत्मा के मंदिर ------------------------------------------------------------ अपने मंदिरों व मस्जिदों को रहने दो हम तो बाक़ी सारा जहान लेंगे जो शुद्धता का भरते हैं दंभ उन्हें ही दिखावटी प्रार्थना और अज़ान दे दो हमीं ने जीवित रखा सृष्टि का चक्र फिर भी लिखा अपने विधानों में तुमने उटपटांग बहुतेरे दंड हमीं देवी थी, तुम्हारे शुद्ध हाथों से पूजी गईं थी लहू के फूल से इतना घबड़ाते हो 'गौरी ' से अचानक अपराधिनी बना देते हो तभी तो स्कूल के एकांत में जाकर सहेलियों से पूछना पड़ता है छुपकर - फुसफुसा कर "ज़रा देख पीछे, स्कर्ट तो ठीक-ठाक है" उनकी स्वीकृति के इशारे पर मानों एक क़िला फ़तह हो जाता है पर घर में अपनों की निगाहों में अछूत बना तन बार-बार यक्षप्रश्नों से टकराता है क्या धरती पर भी कभी कोई पहरा लगा जाता है दस - ग्यारह का अबोध मन समझ नहीं पाता उन वर्जनाओं का मतलब रसोई की चौखट पर लगी 'नो एंट्री' की अदृश्य चेतावनी अलग बर्तनों ...अलग बिस्तरों की दर्दनाक पहेली दैहिक पीड़ा से मिलकर अक्सर बेढंगा...