ओह...ये कामवालियाँ ! दाई...बाई ...या कहो कामवालियाँ वो देखो आ रहीं हैं सुबह- सुबह अपने हाथों को भांजकर जोर- जोर से बतियाते अपनी अलग -सी पहचान लिए अपनी कछुए वाली पीठ पर कई आकाश ढोते हुए । × × × × × × × उन्हें देखते ही मेमसाहबों के चेहरे खिल जाते हैं इत्मीनान है चलो आ तो गईं निपट जाएंगे झाड़ू-पोंछा, बर्तन और अलग से भी कुछ काम मक्खियों की भिनभिनाहट तो होगी रोज़ की तरह × × × × × × × आते ही कामवालियाँ फटाक से घुस जाती हैं ' पवित्र ' रसोईघर में बर्तनों पर छूट गए साबुन के दाग़ से डाँट भी खाती हैं कभी चुप रहती हैं कभी उबल पड़ती हैं चूल्हे पर चढ़ी चाय के साथ × × × × × × × बरामदे से शुरू कर घर के आखिरी कमरे तक पोंछा लगाती जाती हैं पर उन घरों के बाथरूम ...