वह भी एक जश्न था ........... *************************** वह तिल -तिल कर कैसे जली होगी क्या वह कोई दीवानी परवाना थी जो दूर किसी शमा की तरफ़ खिंंची हुई खुद -ब -खुद यूंं ही बेसुध चली गई थी सुना है ,होता था उनका सोलहो श्रृंगार गाए जाते थे वैसे ही सभी मंगलाचार ज्यों उल्लासित दुल्हन का हो रहा हो ब्याह जा रही हो पहली बार प्रियतम के द्वार बज रहे थे ज़ोर से ढोल -नगाड़े -नौबत लगातार पंडित कर रहे थे उच्च ध्वनि में मंत्रोच्चार आग की ऊँची लपटों और धुएँ से सजा था काला आसमान अंधा -बहरा हुआ था मौजूद वहाँ हर इंसान तिल -तिल कर जलकर वह चीखी थी कई बार मृत पति की सेज पर धकेली गई थी जो लाचार बाहर तैनात थे लठैत की शक्ल में कसाई मूंछदार भागती हिरणी को अंदर खदेड़ने को मुश्तैदी से तैयार वह जलती रही झुलसती रही ,रिश्ते हुए तार - तार पुत्र के शोक में डूबे थे ,पर वधू थी दूजे घर की नार चमक उठे थे उस पल कई गर्वित राजपूती भाल ...