सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इश्क़ होता मकरंद

काश होती मैं शकरखोरा  इश्क़ होता मकरंद  छाँह सुंदर होती तो भी धूप की न कोई परवाह  मीरा सी दीवानी होती  तू होता एक  गिरिधर  मीठी सी बोली प्यारी होती  मैं जो खाती वो अमृत शहद  चाहे जितने पुष्प मैं छूती  बस चढ़ता पिया तेरा ही रंग   गीत मधुर सा बन जाती  हो कोई भी मुक्तक छंद ! -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना