काश होती मैं शकरखोरा इश्क़ होता मकरंद छाँह सुंदर होती तो भी धूप की न कोई परवाह मीरा सी दीवानी होती तू होता एक गिरिधर मीठी सी बोली प्यारी होती मैं जो खाती वो अमृत शहद चाहे जितने पुष्प मैं छूती बस चढ़ता पिया तेरा ही रंग गीत मधुर सा बन जाती हो कोई भी मुक्तक छंद ! -सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना