सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना की एक कविता

पोर्ट्रेट _ _ _ _ _ _ _ एक धुंधली आकृति रात के अंधियारे में आंखों से निकाल कर फैला रही थी काग़ज़ पर अथाह पीड़ा की स्याही अगली सुबह लोगों ने देखा काग़ज़ किसी ने कहा एक दुखियारी औरत की कविता है किसी ने कहा नहीं, यह दर्द में डूबी एक कहानी है तल्लीन हो कर देखा एक बूढ़ी औरत ने और सबको बताया एक बेबस स्त्री की सुंदर पोर्ट्रेट है जिसकी नम आंखों में प्रतिबिंबित हो रही है एक गर्भस्थ कन्या शिशु अपनी हत्या का दुःस्वप्न देखकर तन-मन से छटपटाते हुए ज़ोर-ज़ोर से चिल्ल्लाते हुए अंधों को जगाते हुए बहरों को सुनाते हुए मूर्खों को समझाते हुए कसाइयों  से औज़ार छीनते हुए पत्थरों में आदमी को ढूंढते हुए !